Book Title: Jinvani Special issue on Acharya Hastimalji Vyaktitva evam Krutitva Visheshank 1992
Author(s): Narendra Bhanavat, Shanta Bhanavat
Publisher: Samyag Gyan Pracharak Mandal
View full book text
________________
• व्यक्तित्व एवं कृतित्व
११. श्रमण भूत पडिमा : इसमें श्रमण निर्ग्रन्थों के धर्म का पालन किया
जाता है । वह साधु वेष में रहकर अपनी ज्ञाति के कुल में भिक्षाचर्या लेकर विचरता है। पूछने पर अपना परिचय श्रमणोपासक रूप से देता है । इसका काल ११ मास का है।
जघन्य हर प्रतिमा का एक दिन, दो दिन या तीन दिन का साधना काल माना गया है। तप आदि का विशेष वर्णन मूल सूत्र में उपलब्ध नहीं होता। पडिमा-साधन से साधु जीवन में प्रवेश सरलता से हो सकता है।
___ इस प्रकार जीवन-सुधार के पश्चात् श्रावक मरण-सुधार का लक्ष्य रखता और उसके लिए अपच्छिम मारणांतिक संलेखना द्वारा जीवन निरपेक्ष होकर पूर्ण समाधि के साथ देह-विसर्जन करता है। यही श्रावक धर्म की साधना का संक्षिप्त परिचय है।
श्रावक प्रथम महारम्भी से अल्पारम्भी-अल्प परिग्रही होकर अनारंभीअपरिग्रही जीवन की साधना में अग्रसर होता हुआ आत्मशक्ति का अधिकारी बनता है । श्रमण की तरह उसका लक्ष्य भी प्रारम्भ-परिग्रह से अलग होकर शुद्ध बुद्ध निज स्वरूप को प्राप्त करता है ।
श्रावक-गीतिका
0 डॉ० नरेन्द्र भानावत श्रद्धा, ज्ञान, क्रियारत श्रावक । जिसके मन में प्यार उमड़ता, न्याय-नीति से करता अर्जन, वाणी में माधुर्य छलकता, मर्यादित इच्छामय जीवन, चर्या में देवत्व झलकता, हिंसा, झूठ, स्तेय का वर्जन, सरवर में शतदल गुणधारक। निर्व्यसनी संयम-संवाहक । श्रद्धा, ज्ञान, क्रियारत श्रावक ।।१।। श्रद्धा, ज्ञान, क्रियारत श्रावक ।।३।। व्रत-नियमों में जो सुदृढ़, स्थिर, जो समाज की धड़कन सुनता, चाहे आवें संकट फिर-फिर, नग्न मनुजता हित पट बुनता, वत्सल भावी, परहित-तत्पर, शोषण-उत्पीड़न से लड़ता, दीन-दुःखी दलितों का पालक । सत्य, अहिंसा, समता-साधक । श्रद्धा, ज्ञान, क्रियारत श्रावक ॥२॥ श्रद्धा, ज्ञान, क्रियारत श्रावक ॥४॥
Jain Educationa International
For Personal and Private Use Only
www.jainelibrary.org