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तप जप से कर्म खपात्रो, दान द्रव्य फल पाओ । ममता त्यागी सुख पाया रे || पर्व० ॥ ४ ॥ मूरख नर जन्म गमाये, निन्दा विकथा मन भावे । इन से ही गोता खाया रे || पर्व ० ।। ५ ।। जो दान शील आराधे, तप द्वादश भेदे साधे । शुद्ध मन जीवन बरसाया रे || पर्व० ।। ६ ॥ बेला तेला और अठायां, संवर पौषध करे भाया । शुद्ध पालो शील सवाया रे || पवं० ।। ७ । तुम विषय कषाय घटाओ, मन मलिन भाव मत लाओ । निन्दा विकथा तज माया रे || पर्व० ॥ ८ ॥ तास या सोवे । पिक्चर में समय गमाया रे || पर्व० ॥ ६ ॥
केई प्रालस में दिन खोवे, शतरंज
संयम की शिक्षा लेना, जीवों की जयणा करना ।
जो जैन धर्म थें पाया रे ।। पर्व ० ॥ १० ॥ जन-जन का मन हरषाया, बालकगरण भी हुलसाया ।
प्रतम शुद्धि हित आया रे ।। पर्व ० ॥। ११ ॥ समता से मन को जोड़ो, ममता का बन्धन तोड़ो ।
है सार ज्ञान का भाया रे || पर्व० ।। १२ ।। सुरपति भी स्वर्ग से आवे, हर्षित हो जिन गुण गावे ।
जन-जन को अभय दिलाया रे || पर्व० ।। १३ ।। 'गजमुनि' निज मन समभावे, यह सोई शक्ति जगावे ।
अनुभव रस पान कराया रे || पर्व ० ॥ १४ ॥
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व्यक्तित्व एवं कृतित्व
( ३४ )
पर्युषण है पर्व हमारा ( तर्ज - झण्डा ऊंचा रहे हमारा )
पर्युषण है पर्व हमारा देश मुक्ति का है यह द्वारा || टेर || अनंतजीव की मुक्ति विधाता, शान्ति सुधा सब जग बरसाता | श्रात्म शुद्धि का पाठ पढ़ाता, तभी बना जग का यह प्यारा ॥ १ ॥ सुरपति इसमें पुण्य कमाते मृत्युलोक भी पर्व मनाते । मुनिजन के मन सुन हर्षाते, संयमियों का परम धारा ।। २ ।।
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