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________________ • २७० • तप जप से कर्म खपात्रो, दान द्रव्य फल पाओ । ममता त्यागी सुख पाया रे || पर्व० ॥ ४ ॥ मूरख नर जन्म गमाये, निन्दा विकथा मन भावे । इन से ही गोता खाया रे || पर्व ० ।। ५ ।। जो दान शील आराधे, तप द्वादश भेदे साधे । शुद्ध मन जीवन बरसाया रे || पर्व० ।। ६ ॥ बेला तेला और अठायां, संवर पौषध करे भाया । शुद्ध पालो शील सवाया रे || पवं० ।। ७ । तुम विषय कषाय घटाओ, मन मलिन भाव मत लाओ । निन्दा विकथा तज माया रे || पर्व० ॥ ८ ॥ तास या सोवे । पिक्चर में समय गमाया रे || पर्व० ॥ ६ ॥ केई प्रालस में दिन खोवे, शतरंज संयम की शिक्षा लेना, जीवों की जयणा करना । जो जैन धर्म थें पाया रे ।। पर्व ० ॥ १० ॥ जन-जन का मन हरषाया, बालकगरण भी हुलसाया । प्रतम शुद्धि हित आया रे ।। पर्व ० ॥। ११ ॥ समता से मन को जोड़ो, ममता का बन्धन तोड़ो । है सार ज्ञान का भाया रे || पर्व० ।। १२ ।। सुरपति भी स्वर्ग से आवे, हर्षित हो जिन गुण गावे । जन-जन को अभय दिलाया रे || पर्व० ।। १३ ।। 'गजमुनि' निज मन समभावे, यह सोई शक्ति जगावे । अनुभव रस पान कराया रे || पर्व ० ॥ १४ ॥ Jain Educationa International व्यक्तित्व एवं कृतित्व ( ३४ ) पर्युषण है पर्व हमारा ( तर्ज - झण्डा ऊंचा रहे हमारा ) पर्युषण है पर्व हमारा देश मुक्ति का है यह द्वारा || टेर || अनंतजीव की मुक्ति विधाता, शान्ति सुधा सब जग बरसाता | श्रात्म शुद्धि का पाठ पढ़ाता, तभी बना जग का यह प्यारा ॥ १ ॥ सुरपति इसमें पुण्य कमाते मृत्युलोक भी पर्व मनाते । मुनिजन के मन सुन हर्षाते, संयमियों का परम धारा ।। २ ।। For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003843
Book TitleJinvani Special issue on Acharya Hastimalji Vyaktitva evam Krutitva Visheshank 1992
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNarendra Bhanavat, Shanta Bhanavat
PublisherSamyag Gyan Pracharak Mandal
Publication Year1992
Total Pages378
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size7 MB
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