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• प्राचार्य श्री हस्तीमलजी म. सा.
• २७१
पाप ताप संताप मिटाता, मुद मंगल सन्मति का दाता । जीव मात्र के हो तुम भ्राता, निर्मल करदो चित्त हमारा ।। ३ ।। युग-युग में - जो इसे मनावें, राग-द्वेष को दूर भगावें । दिव्य भाव की संपद पावें, प्रानन्द भोयेगा अब सारा ॥ ४ ॥
( ३५ ) . शील री चुन्दड़ी
( तर्ज-सीता माता की गोद में ) धारो धारो री सोभागिन शील री चुन्दड़ीजी।। टेर ।। झूठे भूषण में मत राचो, शील धर्म भूषण है सांचो । राखो तन मन से ये प्रेम, एक सत धर्म से जी..."धारो ॥ १ ।। मस्तक देव गुरु ने नमानो, यही मुकट सिर सच्चा समझो । काने जिनवाणी का श्रवण, रत्नमय कुडलो जी"धारो ।। २ ।। जीव दया और सद्गुरु दर्शन, सफल करो इसमें निज लोचन । नथवर अटल नियम सू, धर्म प्रेम है नाक रो जी''धारो ।। ३ ।। मुख से सत्यवचन प्रिय बोलो, जिन गुरु गुण में शक्ति लगालो। भगिनी यही चूप के अविनाशी, सुख दायिनी जी "धारो ।। ४ ।। सज्जन या दुर्बल सेवा, दीन हीन प्राणी सुख देवा । भुजबल वर्षक रत्न जटित, भुज बन्ध लो जी..."धारो।। ५ ।।
पालो पालो री सौभागिन बहनो
( तर्ज-सीता माता की गोद में )। पालो पालो री सौभागिन बहनो, धर्म को जी........।। टेर ।। बहुत समय तक देह सजाया, घर धंधा में समय बिताया निन्दा विकथा छोड़ करो, सत्कर्म को जी....."पालो॥ १॥ सदाचार सादापन धारो. ज्ञान ध्यान से तप सिणगारो पर उपकार ही भूषण समझो, मर्म को जी..... पालो॥ २ ॥ ये जग जेवर भार सजाया, चोर जानि भय अरु है भूपा भय न किसी का दान, नियम सुकर्म को जी....... पालो ।। ३ ।।
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