Book Title: Jinvani Special issue on Acharya Hastimalji Vyaktitva evam Krutitva Visheshank 1992
Author(s): Narendra Bhanavat, Shanta Bhanavat
Publisher: Samyag Gyan Pracharak Mandal
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• २६६
• व्यक्तित्व एवं कृतित्व
१. मारने की भावना से प्रेरित होकर किसी त्रस जीव की हत्या नहीं
करना।
२. मद्य-मांस का त्यागी होना।
३. नमस्कार मन्त्र पर पूर्ण श्रद्धा रखना। कहा भी है—ाउट्टि थूल-हिंसाई, मज्ज-मसाइ चाइो ।
जहन्ननो सावगो होइ, जो नमुक्कार धारो।।
मध्यम श्रावक:
मध्यम श्रावक की विशेषताएँ इस प्रकार हैं :
१. देव, गुरु, धर्म पर श्रद्धा रखता हुआ जो बड़ी हिंसा नहीं करता।
२. मद्य मांस आदि अभक्ष्य पदार्थों का त्यागी होकर जो धर्म-योग्य लज्जालुता, दयालुता, गंभीरता और सहिष्णुता आदि मुण युक्त हो।
३. जो प्रतिदिन षटकर्म का साधन करता और द्वादश व्रतों का पालन करता हो। कहा गया है
देवार्चा गुरु-शुश्रुषा स्वाध्यायः संयमस्तपः ।
दान चतिगृहस्थाना षट् कर्माणि दिने दिने ।। षट्कर्म : छह दैनिक कर्म इस प्रकार हैं१. देव भक्ति :
वीतराग और सर्वज्ञ देवाधिदेव अरिहंत ही श्रावक के आराध्य, दैव हैं।
श्रावक की प्रतिज्ञा होती है-"अरिहंतो महदेवों" अति अरिहंत मेरे उपास्य देव हैं, उनके लिए कहा गया है-"दसट्ट दोसा न जस्स सो देवो" जिनमें दस और आठ (अट्ठारह) दूषण नहीं हैं, वे ही लोकोत्तर पक्ष में आराध्यदेव हैं।
ज्ञानावरण, दर्शनावरण, मोहनीय और अन्तराय इन चार कर्मों के क्षय से जिनमें अट्ठारह दोष नहीं होते, वे अरिहंत कहलाते हैं। अठारह दोष निम्न प्रकार हैं
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