Book Title: Jinvani Special issue on Acharya Hastimalji Vyaktitva evam Krutitva Visheshank 1992
Author(s): Narendra Bhanavat, Shanta Bhanavat
Publisher: Samyag Gyan Pracharak Mandal
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• व्यक्तित्व एवं कृतित्व
धर्म प्राण यह देश हमारा, सद्-पुरुषों का बड़ा दुलारा,
धर्मनीति आधार प्यारे ॥१॥ सादा जीवन जीएँ सब जन, पश्चिम की नहीं चाल चले जन,
सदाचार से प्यारे ।। २॥ न्याय नीति मय धन्धा चावें, प्राथमिकता को अपनावें,
सब धर्मों का सार ॥ ३ ॥ मैत्री हो सब जग जीवों में, निर्भयता हो सब जीवों में,
भारत के संस्कार ॥४॥ हिंसा झूठ न मन को भावे, सब सबको आदर से चार्वे,
होवे न मन में खार ।। ५॥
( ३१) सुख का मार्ग-विनय ( तर्ज-रिषभजी मूडे बोल )
सदा सुख पावेला २ जो अहंकार तज विनय बढ़ावेला ॥ सदा० ।। अहंकार में अकड़ा जो जन, अपने को नहीं मानेला ।
ज्ञान-ध्यान-शिक्षा-सेवा, का लाभ न पावेला ॥१॥ विनयशील नित हँसते रहता, रूठे मित्र मनावेला ।
निज-पर के मन को हर्षित कर, प्रीत बढ़ावेला ॥ २ ॥ विनय प्रेम से नरपुर में भी - सुरपुर सा रंग लावेला ।
__ उदासीन मुख की सूरत नहीं, नजर निहालेला ॥ ३ ॥ विनय धर्म का मूल कहा है, इज्जत खूब मिलावेला ।
योग्य समझ स्वामी, गुरु-पालक मान दिलावेला।। ४ ।। पुत्र पिता से कुंजी पावे, शिष्य गुरु मन भावेला ।
विनयशील शासक जन को भी, खूब रिझावेला ॥ ५॥ यत् किंचित् कर विनय-गुरु का 'गजमुनि' मन हर्षावेला।
अनुभव कर देखो, जीवन-गौरव बढ़ जावेला ॥ ६ ॥
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