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• व्यक्तित्व एवं कृतित्व
मात-पिता गुरुजन की आज्ञा, हिय में नहीं जमावेला । ___ इच्छाचारी बनकर हित की, सीख भुलावेला । घणो ॥३॥ यो तन पायो चिंतामणि सम, गयां हाथ नहीं आवेला ।
दया दान सद्गुण संचय कर, सद्गति पावेला ॥ घणो ॥४।। निज प्रातम ने वश कर पर की, आतम ने पहचानेला।
परमातम भजने से चेतन, शिवपुर जावेला ॥ घणो ॥५।। महापुरुषों की सीख यही है, 'गजमुनि' आज सुनावेला।
गोगोलाव में माह बदि को, जोड़ सुनावेला ।। घणो ।।६।।
(२७)
देह से शिक्षा ( तर्ज-शिक्षा दे रहा जी हमको रामायण अति प्यारी )
शिक्षा दे रही जी हमको, देह पिंड सुखदाई ।। टेर ।। दस इन्द्रिय अरु बीसों अंग में, देखो एक सगाई ।
सबमें एक-एक में सबकी, शक्ति रही समाई । शिक्षा ।।१।। अाँख चूक से लगता कांटा, पैरों में दुखदाई ।
फिर भी पैर आँख से चाहता, देवे मार्ग बताई । शिक्षा ॥२॥ सबके पोषण हित करता है, संग्रह पेट सदाई ।
रस कस ले सबको पहुंचाता, पाता मान बढ़ाई ॥ शिक्षा ।।३।। दिल सबके सुख-दुख में धड़के, मस्तक कहे भलाई ।
इसी हेतु सब तन में इनकी, बनी अाज प्रभुताई ।। शिक्षा ।।४।। अपना काम करें सब निश्छल, परिहर स्वार्थ मिताई ।
कुशल देह के लक्षण से ही, स्वस्थ समाज रचाई ।। शिक्षा ॥५॥ विभिन्न व्यक्ति अंग समझलो, तन समाज सुखदाई ।
'गजमुनि' सबके हित सब दौड़ें, दुःख दरिद्र नस जाई ।। शिक्षा ।।६।।
(२८)
शुभ कामना
( तर्ज-यही है महावीर संदेश ) दयामय होवे मंगलाचार, दयामय होवे बेड़ा पार ।। टेर ।। करें विनय हिलमिल कर सब ही, हो जीवन उद्धार । दयामय० ।। १ ।।
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