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________________ • २६६ • व्यक्तित्व एवं कृतित्व मात-पिता गुरुजन की आज्ञा, हिय में नहीं जमावेला । ___ इच्छाचारी बनकर हित की, सीख भुलावेला । घणो ॥३॥ यो तन पायो चिंतामणि सम, गयां हाथ नहीं आवेला । दया दान सद्गुण संचय कर, सद्गति पावेला ॥ घणो ॥४।। निज प्रातम ने वश कर पर की, आतम ने पहचानेला। परमातम भजने से चेतन, शिवपुर जावेला ॥ घणो ॥५।। महापुरुषों की सीख यही है, 'गजमुनि' आज सुनावेला। गोगोलाव में माह बदि को, जोड़ सुनावेला ।। घणो ।।६।। (२७) देह से शिक्षा ( तर्ज-शिक्षा दे रहा जी हमको रामायण अति प्यारी ) शिक्षा दे रही जी हमको, देह पिंड सुखदाई ।। टेर ।। दस इन्द्रिय अरु बीसों अंग में, देखो एक सगाई । सबमें एक-एक में सबकी, शक्ति रही समाई । शिक्षा ।।१।। अाँख चूक से लगता कांटा, पैरों में दुखदाई । फिर भी पैर आँख से चाहता, देवे मार्ग बताई । शिक्षा ॥२॥ सबके पोषण हित करता है, संग्रह पेट सदाई । रस कस ले सबको पहुंचाता, पाता मान बढ़ाई ॥ शिक्षा ।।३।। दिल सबके सुख-दुख में धड़के, मस्तक कहे भलाई । इसी हेतु सब तन में इनकी, बनी अाज प्रभुताई ।। शिक्षा ।।४।। अपना काम करें सब निश्छल, परिहर स्वार्थ मिताई । कुशल देह के लक्षण से ही, स्वस्थ समाज रचाई ।। शिक्षा ॥५॥ विभिन्न व्यक्ति अंग समझलो, तन समाज सुखदाई । 'गजमुनि' सबके हित सब दौड़ें, दुःख दरिद्र नस जाई ।। शिक्षा ।।६।। (२८) शुभ कामना ( तर्ज-यही है महावीर संदेश ) दयामय होवे मंगलाचार, दयामय होवे बेड़ा पार ।। टेर ।। करें विनय हिलमिल कर सब ही, हो जीवन उद्धार । दयामय० ।। १ ।। Jain Educationa international For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003843
Book TitleJinvani Special issue on Acharya Hastimalji Vyaktitva evam Krutitva Visheshank 1992
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNarendra Bhanavat, Shanta Bhanavat
PublisherSamyag Gyan Pracharak Mandal
Publication Year1992
Total Pages378
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size7 MB
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