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• प्राचार्य श्री हस्तीमलजी म. सा.
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परम देव पर श्रद्धा राखे, निर्ग्रन्थ गुरु ने सेवे रे । धर्म दया जिनदेव प्ररूपित, सार तीन को मन सेवे रे ।। ३ ॥ श्रद्धा और विवेक विचारां, विमल क्रिया भव तारे रे।। तीन बसे गुण जिन में जानो, श्रावक साचा तेहने रे ।। ४ ।।
(२५)
सच्ची सीख ( तर्ज-जागो जाओ ए मेरे साधु....) गाग्रो गाग्रो अय प्यारे गायक, जिनवर के गुण गारो ॥टेर ।। मनुज जन्म पाकर नहीं कर से, दिया पात्र में दान । मौज शौक अरु प्रभुता खातिर, लाखों दिया बिगाड़ ।।१।। बिना दान के निष्फल कर हैं, शास्त्र श्रबण बिन कान । व्यर्थ नेत्र मुनि दर्शन के बिन, तके पराया गात ।।२।। धर्म-स्थान में पहुंचि सके ना, व्यर्थ मिले वे पाँव । इनके सकल करण जग में, है सत्संगति का दांव ॥३॥ खाकर सरस पदार्थ बिगाड़े, बोल बिगाड़े बात । वृथा मिली वह रसना, जिसने गाई न जिन गुण गात ।।४।। सिर का भूषण गुरु वन्दन है, धन का भूषण दान । क्षमा वीर का भूषण, सबका भूषण है प्राचार ।।५।। काम मोह अरु पुद्गल के हैं, गायें गान हजार । 'गजमुनि' प्रात्म रूप को गाग्रो, हो जावे भव पार ।।६।।
(२६)
हित-शिक्षा ( तर्ज- अाज रंग बरसे रे )
घणो पछतावेला, जो धर्म-ध्यान में मन न लगावेला टेर।। रम्मत गम्मत काम कुतूहल, में जो चित्त लगावेला ।
सत्संगत बिन मरख निष्फल, जन्म गमावेला ॥ घणो ॥१॥ वीतराग की हितमय वाणी, सुणतां नींद बुलावेला ।
रंग-राग नाटक में सारी, रात वितावेला ।। घणो ।।२।।
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