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• व्यक्तित्व एवं कृतित्व
त्रिपदी से जग खेल बतायो, गौतम को दियो बोध । दान दया दम को आराधो, यही शास्त्र की शोध हो ॥श्री०।४।। 'गजमुनि' वीर चरण चित्त लामो, पाओ शान्ति अपार ।। भव-बन्धन से चेतन छुटे, करणी का यह सार हो ||श्री०॥५॥
(२३) जिनवाणी का माहात्म्य ( तर्ज-जामो-जाप्रो ए मेरे साधु रहो गुरु के संग ) करलो-करलो, अय प्यारे सजनो, जिनवाणी का ज्ञान ॥टेर।। जिसके पढ़ने से मति निर्मल, जगे त्याग तप भाव । क्षमा दया मृदु भाव विश्व में, फैल करे कल्याण ।।१॥ मिथ्या-रीति अनीति घटे जग, पावे सच्चा मान ।
देव गुरु के भक्त बनें सब, हट जावे अज्ञान ।।२।। पाप-पुण्य का भेद समझ कर, विधियुत देवो दान । कर्मबन्ध का मार्ग घटाकर, कर लेगो उत्थान ॥३॥ गुरुवाणी में रमने वाला, पावे निज गुण भान । रायप्रदेशी क्षमाशील बन, पाया देव विमान ।।४॥ घर-घर में स्वाध्याय बढ़ानो, तजकर भारत ध्यान । जन-जन की प्राचार शुद्धि हो, बना रहे शुभ ध्यान ॥५॥ मातृ-दिवस में जोड़ बनाई, धर आदीश्वर ध्यान । दो हजार अष्टादश के दिन, 'गजमुनि' करता गान ॥६॥
( २४ ) सच्चा श्रावक
( तर्ज-प्रभाती ) साचा श्रावक तेने कहिये, ज्ञान क्रिया जो धारै रे ।।टेर।। हिंसा झूठ कुशील निवारे, चोरी कर्म ने टाले रे। संग्रह-बुद्धि तृष्णा त्यागे, संतोषामृत पाले रे॥१॥ द्रोह नहीं कोई प्राणी संग, प्रातम सम सब लेखे रे। पर दुःख में दुखिया बन जावे, सब सुख में सुख देखे रे ॥२॥
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