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• प्राचार्य श्री हस्तीमलजी म. सा. .
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वीरों का एक ही नारो हो, जन-जन स्वाध्याय प्रसारा हो ।
___सब जन में यही विचार भरो, तन-धन ।। ७ ।। श्रमणो ! अब महिमा बतलायो, बिन ज्ञान क्रिया सूनी मानो।
'गजमुनि' सद्ज्ञान का प्रेम भरो, तन-धन० ।। ८ ।।
वीर - सन्देश ( तर्जे-लाखों पापी तिर गये सत्संग के परताप से ) वीर के सन्देश को दिल में जमाना सीखलो।
विश्व से हिंसा हटाकर, सुख से रहना सीखलो ।।टेर।। छोड़ दो हिंसा की वृत्ति, दुःख की जड़ है यही ।।
शत्रुता अरु द्रोह की, जननी इसे समझो सही ।। १ ।। प्रेम मूर्ति है अहिंसा, दिव्य शक्ति मानलो ।
वैर नाशक प्रीति बर्द्धक, भावना मन धारलो ।। २॥ क्रोध और हिंसा अनल से, जलते जग को देखलो।
नित नये संहार साधन, का बना है लेख लो ।। ३ ।। परिणाम हिंसा का समझलो, दुःखदाई है सही ।
मरना अरु जग को मिटाना, पाठ इसका देखलो ।। ४ ।।
(२२) जिनवाणी की महिमा
( तर्ज-मांड-मरुधर म्हारो देश ) श्री वीर प्रभु की घाणी, म्हाने प्यारी लागे जी ।।टेर।। पंचास्ति मय लोक दिखायो, ज्ञान नयन दिये खोल । गुण पर्याय से चेतन खेले, मुद्गल (माया) के झकझोल हो ।।श्री० ॥१॥ वाणी जानो ज्ञान की खानी, सद्गुरु का वरदान । भ्रम प्रज्ञान की प्रन्थि गाले, टाले कुमति कुवान हो ।।श्री०।।२।। अनेकान्त का मार्ग बताकर, मिथ्यामत दिया ठेल । धर्म कलह का अन्त कराके, दे निज सुख की सेल हो ।।श्री ॥३॥
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