SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 281
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ • २६२ • व्यक्तित्व एवं कृतित्व कामदेव और भक्त सुदर्शन, ने दी निद्रा त्याग । नत मस्तक देवों ने मानां, उनका सच्चा त्याग जागो२॥ अजात-शत्रु भूपति ने रक्खा, प्रभु भक्ति से प्यार । प्रतिदिन जिनचर्या सुन लेता, फिर करता व्यवहार ॥जामो०।।३।। जग प्रसिद्ध भामाशाह हो गए, लोक चन्द्र इस बार । देश धर्म अरु आत्म धर्म के, हुए कई आधार ।।जामो०॥४॥ तुम भी हो उनके ही वंशज, कैसे भूले मान । कहाँ गया वह शौर्य तुम्हारा, रक्खो अपनी शान |जामो०।।५।। तन धन जोवन लगा मोर्चे, अब ना रहो अचेत । देखो जग में सभी पंथ के, हो गए लोग सचेत ।।जागो०॥६॥ तन धन लज्जा त्याग धर्म का, करलो अब सम्मान । 'गजमुनि' विमल कीर्ति अरु जग का, हो जावे उत्थान ।।जागो०॥७॥ (२०) अाह्वान ( तर्ज-विजयी विश्व तिरंगा प्यारा ) ए वीरो ! निद्रा दूर करो, तन-धन दे जीवन सफल करो । अज्ञान अंधेरा दूर करो, जग में स्वाध्याय प्रकाश करो ।।टेरा। घर-घर में अलख जगा देना, स्वाध्याय मशाल जला देना । __अब जीवन में संकल्प करो, तन-धन० ।।१।। चम्पा का पालित स्वाध्यायी, दरिया तट का था व्यवसायी । _है मूल सूत्र में विस्तारो, तन-धन० ।। २।। स्वाध्याय से मन-मल धुलता है, हिंसा झूठ न मन घुलता है। सुविचार से शुभ प्राचार करो, तन-धन ॥ ३ ॥ अशान से दुःख दूना होता, अज्ञानी धीरज खो देता। ___ सद्ज्ञान से दुःख को दूर करो, तन-धन० ।। ४।। मानी को दुःख नहीं होता है, ज्ञानी धीरज नहीं खोता है । __ स्वाध्याय से ज्ञान भण्डार भरो, तन-धन० ॥ ५ ॥ है सती जयन्ती सुखदायी, जिनराज ने महिना बतलाई । भगवती सूत्र में विस्तारो, तन-धन० ।। ६ ।। Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003843
Book TitleJinvani Special issue on Acharya Hastimalji Vyaktitva evam Krutitva Visheshank 1992
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNarendra Bhanavat, Shanta Bhanavat
PublisherSamyag Gyan Pracharak Mandal
Publication Year1992
Total Pages378
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy