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• प्राचार्य श्री हस्तीमलजी म. सा.
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श्री लोकशाह सम शास्त्र बांच कर, ज्ञान बढ़ायेंगे । ___ शासन-सेवी श्री धर्मदास मुनि, के गुण गाएंगे ।।५।। देकर प्राणों को शासन की, हम ज्ञान बढ़ायेंगे।
हर प्रान्तों में स्वाध्यायी जन, अब फिर दिखलायेंगे ।।६।।
( १८) स्वाध्याय करो, स्वाध्याय करो
[ तर्ज- उठ भोर भई टुक जाग सही........ ] जिनराज भजो, सब दोष तजो, अब सूत्रों का स्वाध्याय करो। मन के अज्ञान को दूर करो, स्वाध्याय करो, स्वाध्याय करो। जिनराज की निर्दूषण वाणी, सब सन्तों ने उत्तम जानी।
तत्त्वार्थ श्रवण कर ज्ञान करो, स्वाध्याय करो, स्वाध्याय करो ॥१॥ स्वाध्याय सुगुरु की वाणी है, स्वाध्याय ही प्रात्म कहानी है।
स्वाध्याय से दूर प्रमाद करो, स्वाध्याय करो, स्वाध्याय करो ॥२॥ स्वाध्याय प्रभु के चरणों में, पहुँचाने का साधन जानो।
स्वाध्याय मित्र स्वाध्याय गुरु, स्वाध्याय करो, स्वाध्याय करो ॥३॥ मत खेल-कूद निद्रा-विकथा में, जीवन धन बर्वाद करो।
सद्ग्रन्थ पढ़ो, सत्संग करो, स्वाध्याय करो, स्वाध्याय करो ।।४।। मन-रंजन नॉविल पढ़ते हो, यात्रा विवरण भी सुनते हो।
पर निज-स्वरूप ओलखने को, स्वाध्याय करो, स्वाध्याय करो ॥५॥ स्वाध्याय बिना घर सूना है, मन सूना है सद्ज्ञान बिना ।
घर-घर गुरुवाणी गान करो, स्वाध्याय करो, स्वाध्याय करो ॥६॥ जिन शासन की रक्षा करना, स्वाध्याय प्रेम जन-मन भरना । 'गजमुनि' ने अनुभव कर देखो, स्वाध्याय करो, स्वाध्याय करो ॥७॥
[१६] जागृति - सन्देश
( तर्ज-जाप्रो २ रे मेरे साधु ) जागो-जागो हे आत्मबन्धु मम, अब जल्दी जागो।। टेर ।। अनन्त-ज्ञान श्रद्धा-बल के हो, तुम पूरे भंडार । बने आज अल्पज्ञ मिथ्यात्वी, खोया सद् आचार ।।जागो०।।१।।
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