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• प्राचार्य श्री हस्तीमलजी म. सा.
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गाई यह गाथा अविचल मोद करण में, सौभाग्य गुरु की पर्व तिथि के दिन में। सफली हो आशा यही कामना पूरण कर दो ।। रग ।। ७ ।।
( १२ ) सामायिक का स्वरूप
(तर्ज-अगर जिनराज के चरणों में) अगर जीवन बनाना है, तो सामायिक तू करता जा ।
हटाकर विषमता मन, साम्यरस पान करता जा ।। टेर ।। मिले धन सम्पदा अथवा, कभी विपदा भी आ जावे ।
हर्ष और शोक से बचकर, सदा एक रंग रखता जा ।। १ ।। विजय करने विकारों को, मनोबल को बढ़ाता जा।
हर्ष से चित्त का साधन, निरंतर तू बनाता जा ।। २ ।। अठारह पाप का त्यागन, ज्ञान में मन रमाता जा ।
अचल आसन व मित-भाषण, शांत भावों में रमता जा ।। ३ ।। पड़े अज्ञान के बन्धन, सदा मन को घमाता है।
ज्ञान की ज्योति में प्राकर, अमित आनन्द बढ़ाता जा ।। ४ ।। पड़ा है कर्म का बन्धन, पराक्रम तू बढ़ाता जा।
हटा आलस्य विकथा को, अमित आनन्द पाता जा ॥ ५ ॥ कहे 'गजमुनि' भरोसा कर, परम रस को मिलाता जा।
भटक मत अन्य के दर पर, स्वयं में शान्ति लेता जा ।। ६ ।।
सामायिक-सन्देश (तर्ज-तेरा रूप अनुपम गिरधारी दर्शन की छटा निराली है) जीवन उन्नत करना चाहो, तो सामायिक साधन करलो।
माकुलता से बचना चाहो, तो....सा० ।। टेर ।।
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