Book Title: Jinvani Special issue on Acharya Hastimalji Vyaktitva evam Krutitva Visheshank 1992
Author(s): Narendra Bhanavat, Shanta Bhanavat
Publisher: Samyag Gyan Pracharak Mandal
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• २५०
• व्यक्तित्व और कृतित्व
मैं नहीं श्याम गौर तन भी हूँ, मैं न सुरूप-कुरूप ।
नहीं लम्बा, बौना भी मैं हूँ, मेरा अविचल रूप ॥२॥ अस्थि मांस मज्जा नहीं मेरे, मैं नहीं धातु रूप ।
हाथ, पैर, सिर आदि अंग में, मेरा नहीं स्वरूप ।।३।। दृश्य जगत पुद्गल की माया, मेरा चेतन रूप ।
पूरण गलन स्वभाव धरे तन, मेरा अव्यय रूप ।।४।। श्रद्धा नगरी वास हमारा, चिन्मय कोष अनूप ।
निराबाध सुख में झूलूं मैं, सद् चित् आनन्द रूप ।।५।। शक्ति का भण्डार भरा है, अमल अचल मम रूप। __ मेरी शक्ति के सन्मुख नहीं, देख सके अरि भूप ।।६।। मैं न किसी से दबने वाला, रोग न मेरा रूप । __ 'गजेन्द्र' निज पद को पहचाने, सो भूपों का भूप ।।७।।
( ३ )
आत्म-बोध [तर्ज—गुरुदेव हमारा करदो] समझो चेतनजी अपना रूप, यो अवसर मत हारो।।टेर।। ज्ञान दरस-मय रूप तिहारो, अस्थि-मांस मय देह न थारो।
दूर करो अज्ञान, होवे घट उजियारो ॥समझो।।१।। पोपट ज्यूं पिंजर बंधायो, मोह कर्म वश स्वांग बनायो ।
रूप धरे हैं अनपार, अब तो करो किनारो ।।समझो।।२।। तन धन के नहीं तुम हो स्वामी, ये सब पुद्गल पिंड हैं नामी।
सत् चित् गुण भण्डार, तू जग देखनहारो समझो।।३॥ भटकत-भटकत नर तन पायो, पुण्य उदय सब योग सवायो।
ज्ञान की ज्योति जगाय, भरम-तम दूर निवारो ।।समझो।।४।। पुण्य पाप का तू है कर्ता, सुख-दुख फल का भी तू भोक्ता ।
तू ही छेदनहार, ज्ञान से तत्त्व विचारो ।।समझो।।५॥
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