________________
• २५४
व्यक्तित्व एवं कृतित्व
चिरकाल संघ सहवास में लाभ कमावें , नहीं भेद भाव कोई दिल में लावें। एक सूत्र में हम, सबको दिखला दो।।घट।।४।।
चर स्थावर साधन भरपूर मिलावें , साधना मार्ग में नहीं चित्त अकुलावे । 'गज' बर्धमान पद के, अधिकारी कर दो ।घट।।५।।
गुरु-महिमा (तर्ज-कुंथू जिनराज तू ऐसा)
अगर संसार में तारक, गुरुवर हो तो ऐसे हों ।।टेर।। क्रोध पो लोभ के त्यागी, विषय रस के न जो रागी। सुरत निज धर्म से लागी, मुनीश्वर हो तो ऐसे हों ।।अगर।।१।। न धरते जगत से नाता, सदा शुभ ध्यान मन भाता। वचन अघ मेल के हरता, सुज्ञानी हो तो ऐसे हों ।।अगर।।२।। क्षमा रस में जो सरसाये, सरल भावों से शोभाये। प्रपंचों से विलग स्वामिन्, पूज्यवर हो तो ऐसे हों ।।अगर।।३।। विनयचंद पूज्य की सेवा, चकित हो देखकर देवा । गुरु भाई की सेना के, करैय्या हो तो ऐसे हों ।।अगर।।४।। विनय और भक्ति से शक्ति, मिलाई ज्ञान की तुमने । अने आचार्य जनता के, सुभागी हो तो ऐसे हों ।।अगर।।५।।
Jain Educationa International
For Personal and Private Use Only
www.jainelibrary.org