Book Title: Jinvani Special issue on Acharya Hastimalji Vyaktitva evam Krutitva Visheshank 1992
Author(s): Narendra Bhanavat, Shanta Bhanavat
Publisher: Samyag Gyan Pracharak Mandal
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• व्यक्तित्व एवं कृतित्व
फैशनपरस्ती, मादक द्रव्यों के प्रयोग व शृंगार-प्रसाधनों के विरुद्ध चर्चा एवं संकल्प का आयोजन होता । बाल-संस्कार एवं सादगीपूर्ण जीवन की अच्छाइयों पर प्रकाश डाला जाता। वर्तमान का बालक ही भविष्य का निर्माता है अतः आचार्य श्री का विशेष ध्यान नारी-जागृति पर था। जब भी कभी कोई नवविवाहिता दुल्हन दर्शनार्थ पाती थी तब प्राचार्य श्री उसे विशेष समय व अवसर प्रदान करते थे। उसे स्वाध्याय-सामायिक की प्रेरणा देते, जीवन सुखमयशांतिमय बनाने की विधि समझाते थे-विनय, विवेक, पानी, अग्नि, वनस्पति आदि की यतना के बारे में व्यावहारिक ज्ञान प्रदान करते थे। आज महिला समाज की जागृति का बहुत कुछ श्रेय आचार्य श्री को जाता है।
प्राचार्य श्री ने सामायिक और स्वाध्याय हर सद्-गृहस्थ के लिए आवश्यक बतलाया था। आपने स्वाध्याय का महत्त्व समझाकर सद्गृहस्थ की भटकन को मिटा दिया, व्यक्ति के चित्त को स्थिरता प्रदान की। आपने शास्त्र-वाचन, उत्तराध्ययन, दशवैकालिक आदि सूत्रों के स्वाध्याय की प्रेरणा प्रदान की। समाज में स्वाध्याय के प्रति रुचि पैदा हुई। आपने इस दिशा में घर-घर अलख जगाई । अतः कहा जाता है
'हस्ती गुरु के दो फरमान ।
सामायिक स्वाध्याय महान् ।' इसी लक्ष्य को मध्ये नजर रखकर आपने समाज के विद्वत् वर्ग एवं श्रेष्ठीवर्ग में सामञ्जस्य हेतु प्रेरणा दी जिसके फलस्वरूप 'अखिल भारतीय जैन विद्वत् परिषद्' की स्थापना सन् १९७८ में आपके इन्दौर चातुर्मास में हुई। इसमें महिलाओं को भी जोड़ा गया है। समाज की परित्यक्ता, गरीब और विधवा महिलाओं की सहायतार्थ एक व्यापक योजना जोधपुर में क्रियान्वित की गई है। आज आचार्य श्री की प्रेरणा से अनेक संस्थाएँ चल रही हैं। आपको समाज के सर्वांगीण विकास और प्रत्येक समस्या के निराकरण का पूरा ध्यान था, इसीलिए आप एक युगद्रष्टा महामनीषी संत के रूप में सदा स्मरण किये जाते रहेंगे।
-१/१७, महेश नगर, इन्दौर (म. प्र.)
नारी तुम केवल श्रद्धा हो, विश्वास रजत नग पग तल में । पीयूष स्रोत सी बहा करो, जीवन के सुन्दर समतल में ।
---जयशंकर प्रसाद
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