________________
प्राचार्यश्री का प्रवचन साहित्य : एक मूल्यांकन
*
डॉ. पुष्पलता जैन
आचार्य श्री हस्तीमलजी म. सा. एक कुशल प्रवचनकार थे। उनकी प्रवचन शैली अत्यन्त प्रभावक और झकझोरने वाली थी। श्रोता उन्हें सुनकर कभी ऊबते नहीं थे और अपने व्यक्तित्व-विकास के लिए दृढ़-प्रतिज्ञ से बन जाते थे । उनकी भाषा, शैली और विषय-प्रस्तुतिकरण में ऐसा आकर्षण था कि साधक जीवन में क्रांतिकारी परिवर्तन किये बिना नहीं रहता।
आचार्य श्री के बहु-आयामी व्यक्तित्व में से हम उनके समन्तभद्र प्रवचनशील व्यक्तित्व को समझने का प्रयत्न करेंगे जिसमें बालकों और युवा पीढ़ी के साथ ही वृद्धों की चेतना को जाग्रत करने की अहम भूमिका रही है। हमारे सामने उनके प्रवचन साहित्य में से 'गजेन्द्र व्याख्यान माला' शीर्षक से प्रकाशित दो भाग (तीसरा और छठा) तथा 'जिनवाणी' में प्रकाशित कतिपय प्रवचन हैं जिनके आधार पर हम उसका मूल्यांकन कर रहे हैं और उनकी उपयोगिता पर प्रकाश डाल रहे हैं।
प्राध्यात्मिक दृष्टि से-प्राचार्य श्री आध्यात्मिक क्षेत्र में रचे-पचे साधक थे। स्वाध्याय और सामायिक आन्दोलन के प्रवर्तक थे इसलिए उनके प्रवचन का अधिकांश भाग अध्यात्म से अधिक सम्बद्ध है। अध्यात्म का ही एक भाग नैतिक तत्त्व है और दूसरा उसका विकसित रूप दर्शन है । अत: इन तीनों तत्त्वों पर विचार करना आवश्यक है । चूंकि प्राचार्य श्री पागम के मर्मज्ञ थे, उनके विचार और प्रवचन, आगम की सीमा से बाहर जाते दिखाई नहीं देते। उन्होंने आत्मा, कर्म, स्वाध्याय, पर्युषण, तप, त्याग, दान जैसे उपयोगी विषयों पर सरल भाषा में सोदाहरण अच्छा प्रकाश डाला है और पाबाल वृद्धों को धर्म और अध्यात्म की ओर आकर्षित कर जीवन के मूल्य को सही ढंग से पहचानने का पथ प्रशस्त किया है। उनका समर्पित व्यक्तित्व अध्यात्म साधक था और वे समाज के उन्नयन में क्रांतिकारी परिवर्तक थे ।
जिनवाणी और श्रावक-प्राचार्य श्री जिनवाणी को ज्ञानगंगा कहा करते थे जो मन-शुद्धि और आत्म-शुद्धि करती है। वाणी की निर्मलता वक्ता पर निर्भर करती है। चूंकि जिनवाणी का वक्ता राग-द्वेष ने मुक्त वीतरागी सर्वज्ञ है अतः
Jain Educationa international
For Personal and Private Use Only
www.jainelibrary.org