Book Title: Jinvani Special issue on Acharya Hastimalji Vyaktitva evam Krutitva Visheshank 1992
Author(s): Narendra Bhanavat, Shanta Bhanavat
Publisher: Samyag Gyan Pracharak Mandal
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श्राचार्य श्री हस्तीमलजी म. सा.
मुझे उनके श्रीमुख से निकला सारतत्त्व सुनाई दिया था - नवकार मंत्र का पाठ करो । उनकी छवि का स्मरण करते मुझे जान पड़ता है कि मुंहपत्ती के पीछे जप करते हुए नहीं सी गति करते होठ हैं और तो और पूरी ही देह अजपाजप कर रही है । प्रसादी में हमें प्रार्थना पकड़ाते हुए बे प्रतीत होते हैं । भावभूमि से लौट हम धरती की सांस लें तो मुझे विश्वास आता है कि उनका मिशन रहा - भटके जीव को सच्चे प्रार्थी में बदल देना - निज स्वरूप के प्रति व्यष्टि को सचेष्ट कर दें—उसे समस्त आधि, व्याधि दूर करने की जुगत बता दें
भीखा भूखा कोई नहीं, सबकी गठरी लाल । गिरह खोल न जानसी, ताते भये कंगाल ।।
'मैं हूँ उस नगरी का भूप' नामक कविता ने कितना सबल कर दिया निराश्रित सी स्थिति में बैठे जीव को ।
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मैं न किसी से दबनेवाला, रोग न मेरा रूप । 'गजेन्द्र' निज पद को पहचाने, सो भूपों के भूप ॥
प्रार्थना विषय पर दिये व्याख्यान सचमुच में निर्बल का बल है; एक नाड़ी के लिए वह हितैषी पथप्रदर्शिका पुस्तक है, क्योंकि वह पुरुषार्थी बनाती है - "मेरे अन्तर भया प्रकाश, नहीं अब मुझे किसी की आश ।”
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मैं अपना निवेदन समाप्त करने से पूर्व कहना चाहता हूँ कि इन प्रवचनों, से ईसा मसीह के ये उद्गार वास्तविकता बनकर हमारे सामने आते हैं- "जो कोई उस जल में से पियेगा, जो मैं उसे दूंगा, वह फिर कभी प्यासा न होगा । लेकिन वह जल जो मैं उसे दूंगा, उसके अंतर में जल का एक सोता बन जायेगा जो अनंत जीवन में उमड़ पड़ेगा ।"
• अन्तःकरण से उद्भूत प्रार्थना ही सच्ची प्रार्थना है ।
वीतराग की प्रार्थना क्षीर सागर का मधुर अमृत है ।
प्रार्थना का प्राण भक्ति है ।
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- एसोशियेट प्रोफेसर, भौतिक शास्त्र विभाग राजस्थान वि० वि०, जयपुर
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- श्राचार्य श्री हस्ती
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