Book Title: Jinvani Special issue on Acharya Hastimalji Vyaktitva evam Krutitva Visheshank 1992
Author(s): Narendra Bhanavat, Shanta Bhanavat
Publisher: Samyag Gyan Pracharak Mandal
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• २२४
• व्यक्तित्व एवं कृतित्व
इस तरह आचार्य श्री तत्त्ववेत्ता के साथ सच्चे समाज-सुधारक थे। वे पर उपकार को भूषण मानते थे। उन्हीं के शब्दों में
"सज्जन या दुर्बल सेवा, दीन हीन प्राणी सुख देना, भुजबल वर्धक रत्नजटित्व, भुजबंध लो जी।"
वे तपश्चर्या के समय पीहर पक्ष की ओर से मिलने वाले प्रीतिदान को उपयुक्त नहीं मानते थे। क्योंकि कई बार यह तपस्या करने वाली उन बहिनों के मार्ग में रोड़े अटकाता जिनके पीहर वालों की खर्च करने की क्षमता नहीं होती । अतएव प्राचार्य श्री तपश्चर्या के नाम से दिये जाने वाले प्रीतिदान के हिमायती कभी नहीं रहे।
शील की चुदड़ी एवं संयम का पैबंद लगानो-प्राचार्य भगवन् बहनों के संयमित जीवन पर बहुत बल देते थे। उनका उद्घोष था “जहाँ सदाचार का बल है वहाँ नूर चमकाने के लिये बाह्य उपकरणों की आवश्यकता नहीं होती; माह्य उपकरण क्षणिक हैं, वास्तविक सौन्दर्य तो सदाचार है जो शाश्वत है, अमिट है। उम्र बढ़ने के साथ बचपन से जवानी से बुढ़ापा आता है, झरिये भी पड़ती हैं लेकिन आत्मिक शक्ति उम्र बढ़ने के साथ रंग ही लाती है, बदरंग नहीं करती।"
युग बदलने के साथ हमारे जीवन के तौर-तरीकों में बहुत अंतर पा गया है। हमारी भावी पीढ़ी चारित्रिक सौन्दर्य के बजाय शरीर-सौन्दर्य पर अधिक बल दे रही है । उस सौन्दर्य के नाम पर जिस कृत्रिम भौण्डेपन का प्रदर्शन किया जा रहा है उसमें हिंसा और क्रूरता का भाव मिला हुआ है। प्राचार्य श्री फैशनपरस्त वस्तुओं के उपयोग के सख्त खिलाफ थे। वे 'सादा जीवन और उच्च विचार' को सन्मार्ग मानते थे। उनका उद्घोष था
"ये जर जेवर भार सरूपा।" इनके चोरी होने का डर रहता है। इनसे दूसरों में ईष्या-द्वष उत्पन्न होता है और अनैतिकता को बढ़ावा मिलता है। सास से बहू को ताने सुनने पड़ सकते हैं, १० साल की लड़की ५० साल के बुढ्ढे को परणाई जा सकती है और तो और दो तौले के पीछे अपनी जान खोनी पड़ सकती है। अतएव गहनाकपड़ा नारी का सच्चा आभूषण नहीं, श्रेष्ठ प्राभूषण तो शील है
"शील और संयम की महिमा तुम तन शोभे हो । सोने, चांदी हीरक से नहीं, खान पुजाई हो ।”
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