Book Title: Jinvani Special issue on Acharya Hastimalji Vyaktitva evam Krutitva Visheshank 1992
Author(s): Narendra Bhanavat, Shanta Bhanavat
Publisher: Samyag Gyan Pracharak Mandal
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स्वाध्याय के प्रबल प्रेरक
। श्री चैतन्यमल ढढ्ढा
श्रमण संस्कृति के शीर्ष आचार्य श्री हस्तीमलजी म. सा. ऐसे महाकल्पवृक्ष, अध्यात्म योगी, इतिहास पुरुष, युगान्तकारी विरल विभूति, सिद्ध और दिव्य पुरुष थे, जो वस्तुतः सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान और सम्यक्चारित्र के आदर्श प्रतिमान थे। प्राचार्य श्री के व्यक्तित्व में भक्ति, कर्म और ज्ञान की त्रिवेणी प्रवाहित होती थी।
- आचार्य श्री के व्यक्तित्व और कृतित्व का मूल्यांकन अलग-अलग दृष्टिकोण से किया जा सकता है, किन्तु मेरी ऐसी धारणा है कि प्राचार्य श्री साधना और आध्यात्मिकता का गौरव शिखर छू सके, क्योंकि आचार्य श्री स्वाध्याय के प्रवल प्रेरक रहे।
___आचार्य श्री सात दशकों तक स्वाध्याय की अखण्ड ज्योति प्रज्वलित करते रहे, ज्ञान की दुंदुभि बजाते रहे और सम्यग्ज्ञान का शंखनाद करते रहे। प्राचार्य श्री महान् कर्मयोगी और साधना में लीन समाधिस्थ योगी थे, यह आचार्य श्री की वैयक्तिक उपलब्धि है। आचार्य श्री ने आत्मा के तारों को छूकर स्वार्थ से परमार्थ की ओर, राग से विराग की ओर, भौतिकता से आध्यात्मिकता की ओर और भोग से योग की ओर यात्रा की। यह उत्तुंग व्यक्तित्व प्रात्म साक्षात्कार के क्षणों में सिद्ध और दिव्य बन गया।
कबीर की मान्यता है कि महान् पुरुष और शीर्षस्थ ज्ञानी, स्वयं ही ज्ञान प्राप्त नहीं करता, किन्तु मानवता को ज्ञान के पथ पर प्रशस्त करता है
अब घर जाल्यो आपणो, लिये मुराड़ा हाथ ।
अब पर जालों तासकी, चलो हमारे साथ ।। अर्थात् अब तक मैंने अपना घर जलाया है, राग-द्वेष को नष्टकर ज्ञान की ज्योति प्रज्वलित करने के लिये ज्ञान की मशाल हाथ में ली है किन्तु अब मैं तुम्हारा घर जलाऊँगा, तुम्हें ज्ञान से प्रज्वलित करूँगा।
स्वाध्याय के प्रबल प्रेरक के रूप में प्राचार्य श्री ने जीवनपर्यन्त ज्ञान और स्वाध्याय की अखण्ड ज्योति प्रज्वलित की। ज्ञान ऊपर से थोपा जा सकता है, किन्तु स्वाध्याय से प्रसूत ज्ञान, अनुभूति की आँच में तपकर पक्का बन जाता है।
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