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व्यक्तित्व एवं कृतित्व
आचार्य सम्राट् श्री श्रानन्द ऋषिजी म. सा. के अनुसार "पूज्य श्री जी स्वाध्याय और सामायिक स्वाध्याय के प्रेरक दीप स्तम्भ थे ।" आचार्य श्री नानालालजी म. सा. के अनुसार "आचार्य श्री हस्तीमलजी म. सा. विशुद्ध ज्ञान और निर्मल आचरण के पक्षधर थे ।" उपाध्याय श्री केवल मुनिजी ने भी " प्राचार्य श्री हस्तीमलजी म. सा. को एक मूर्धन्य मनीषी एवं लेखक संत " माना है ।
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आचार्य श्री में सागर की गहराई और पर्वत की ऊँचाई थी, प्राचार की दृढ़ता और विचारों की उदारता थी, किन्तु आचार्य श्री के महत् व्यक्तित्व का उद्गम स्रोत सम्यग्ज्ञान था । ज्ञान का अथाह सागर आपके व्यक्तित्व में हिलोरें मारता था और असंख्य ज्ञान उर्मियाँ उछलकर सहृदय श्रोताओं को सिक्त करती थीं । आप शब्दों के जादूगर थे । धर्म और दर्शन की जटिल शब्दावली को आप सरल शब्दों में अपनी गहरी विवेचनात्मक प्रतिभा से अनपढ़ से लेकर विज्ञजनों को अभिभूत कर देते थे ।
आचार्य श्री ने ज्ञान और स्वाध्याय के बल पर जैन आगम साहित्य का अध्ययन और मनन ही नहीं, किन्तु गवेषणात्मक दृष्टि से विवेचन - विश्लेषण किया ।
आचार्य श्री ने बाह्याचारों के स्थान पर स्वाध्याय की मशाल जलाई । आपने धर्म को अंधभक्ति और अंधश्रद्धा से हटाकर स्वाध्याय के पथ पर प्रशस्त किया । आपकी मान्यता रही कि तोते की तरह बिना समझे नवकार रटना धर्म नहीं, बिना ध्यान के सामायिक ठीक नहीं, धर्म को समझे बिना अंधे व्यक्ति की तरह धर्म प्रचार करना उचित नहीं । कबीर की तरह आपने हाथ की माला के स्थान पर मन की माला को और सम्यग्ज्ञान को व्रत-उपवास से अधिक महत्त्व दिया ।
आचार्य श्री रत्नवंशी सम्प्रदाय के सप्तम पट्टधर होकर भी सम्प्रदाय निरपेक्ष थे, क्योंकि आचार्य श्री का स्वाध्याय जैन धर्म की प्राचीरों से परे मानवतावादी धर्म की परिधि को छूता रहा ।
स्वाध्याय की अखण्ड ज्योति प्रज्वलित करने के लिये आचार्य श्री की प्रेरणा से कितनी ही संस्थाएँ गतिमान हैं । अनेक पुस्तकालय, स्वाध्याय संघ और अनेक पाठशालाएँ आदि स्वाध्याय की मशाल जलाकर प्राचार्य श्री की देशना को पूरा कर रही हैं । सम्यग्ज्ञान प्रचारक मण्डल, जयपुर का भी संकल्प है कि ज्ञान और स्वाध्याय के द्वारा श्रमण संस्कृति का संरक्षण, सम्प्रेषण और सृजन हो और यही प्राचार्य श्री की पुण्यतिथि पर सच्ची श्रद्धांजलि है ।
- मंत्री, सम्यग्ज्ञान प्रचारक मण्डल, बापू बाजार, जयपुर
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