Book Title: Jinvani Special issue on Acharya Hastimalji Vyaktitva evam Krutitva Visheshank 1992
Author(s): Narendra Bhanavat, Shanta Bhanavat
Publisher: Samyag Gyan Pracharak Mandal
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• प्राचार्य श्री हस्तीमलजी म. सा.
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यह जैन दर्शन की ही महिमा है कि उसने मनुष्य को इतनी महत्ता, इतना गौरव, इतनी गरिमा और ऊँचाई दी कि वह स्वयं ईश्वर बन सकता है, वीतरागी बन सकता है—बिना इस बात का ध्यान किये कि उसका रंग क्या है ? रूप क्या है ? जाति क्या है ? वह गरीब है या अमीर और उसकी हैसियत क्या है ? हम सोचते हैं दुनिया के इतिहास में यह अनुपम बात है कि मनुष्य को रंग, रूप और जाति से परे हटकर इतनी ऊँचाई प्रदान की जाए। और यहीं जैनत्व विश्वव्यापी स्वरूप ग्रहण कर लेता है।
भारत ने यह जाना है, सोचा है और समझा है कि इस ब्रह्माण्ड की समग्र चेतना एक ही है-इसलिए 'वसुधैव कुटुम्बकम्' की बात हमने कही। इसलिये दुनिया के किसी कोने में यदि रंग-भेद पर अत्याचार होता है, तो हमारी आत्मा पर जैसे चोट होती है, यदि कहीं खाड़ी युद्ध में विध्वंस होता है, तो हमें लगता है कि हमारा ही अपना कहीं नष्ट हो रहा है । यह जो समग्र चिन्तन इस धरा पर विकसित हुआ है-उसको परिपक्वता देने में जैन दर्शन का बड़ा महत् योगदान है और हिंसा के इस माहौल में यदि अहिंसा एक सशक्त धारा के रूप में, जीवन दर्शन और प्रणाली के रूप में विद्यमान है-तो उसका श्रेय बहुत कुछ जैन साधु-सन्तों और परम प्रकाशमान आचार्य श्री हस्तीमलजी म. सा. जैसे महापुरुषों को जाता है-जिन्होंने स्वाध्याय को जीवन और साधना के एक हिस्से के रूप में न केवल अपने चरित्र और प्राचार का हिस्सा बनाया, वरन् उसे लाख-लाख लोगों के जीवन में उतारा भी।
इस पुनीत प्रसंग पर यदि हम 'स्वाध्याय' को अपने जीवन में उतार सकें-तो न केवल एक अहिंसक धारा का, प्रवाह अपने जीवन में कर पाएंगे वरन् एक नये मनुष्य का, अहिंसक मनुष्य का अहिंसक समाज का निर्माण हम कर सकेंगे-जो हिंसा से भरे इस विश्व को एक नया संदेश दे सकेगा कि पूरा ब्रह्माण्ड एक है-एक ही चेतना विद्यमान है। क्योंकि यह भारत ही हैजिसने दुनिया को एटम और अहिंसा-ये दोनों अपार शक्तिवान अस्त्र दिये। एटम यदि भौतिक ऊर्जा का प्रतीक है, तो अहिंसा आध्यात्मिक ऊर्जा का सर्वोच्च अस्त्र.......। आइये, उसे और गतिमान बनाएँ।
-ब-८, विश्वविद्यालय प्राध्यापक आवास, ए. बी. रोड, इन्दौर-४५२ ००१
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