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• प्राचार्य श्री हस्तीमलजी म. सा.
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आसानी से नहीं मिलता' 'अछते का त्यागी' आदि कहाबतों का प्रयोग कर उसे और भी सरल और आकर्षक बना देते थे ।
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आचार्य श्री एक दूरदर्शी संत थे । वे परम्परा के पोषक थे पर सुधारवादी भी कम नहीं थे । सामंजस्य और समन्वय के आधार पर वे समाज को विघटन और टूटन से बचाते रहे हैं । आचार्य श्री की दृष्टि में सत्य, शांति और लोककल्याण के लिए परम्परा और सुधारवादी प्रयोग दोनों का उचित समन्वय होना आवश्यक है । उनकी समन्वयवादिता तब भी दिखाई दी जब उन्होंने स्थानक - वासी समाज के विभिन्न सम्प्रदायों को यथावत रखते हुए एक संयुक्त संघ बनाने की पेशकश की जो पृथक् नेतृत्व की स्थिति में भी परस्पर मधुर सम्बन्धों को कायम रख सके (जिन., मार्च - मई, ७१) ।
इस प्रकार आचार्य श्री के प्रवचन साहित्य का मूल्यांकन करते समय हमें ऐसा अनुभव हुआ कि एक आध्यात्मिक सन्त अपने पवित्र हृदय से संसारी प्राणियों को भौतिकतावादी वृत्ति से विमुख कर उनके व्यक्तित्व का विकास करने के लिए कमर कसे हुए थे । उनकी प्रवचन- शैली में श्रागमन पद्धति का प्रयोग अधिक दिखाई देता है जहाँ वे केन्द्रीय तत्त्व को सूत्र रूप में रखते थे और फिर उसकी व्याख्या करते चले जाते थे । वे अपने प्रवचनों में राजस्थानी शैली के 'फरमाया' जैसे शब्दों का प्रयोग भी करते थे । वक्ता और श्रोता के बीच इतनी आत्मीयता स्थापित कर देते थे कि श्रोता मंत्रमुग्ध-सा होकर उनके वचनामृतों का पान करता था । यही कारण है कि उनके श्रावकों की संख्या अनगिन सी हो गयी । श्रावकों के मन में उनके प्रति जो अपार भक्ति है, वह आचार्य श्री की लोकप्रियता का उदाहरण है ।
- अध्यक्ष, हिन्दी विभाग, एस. एफ. एस. कॉलेज, नागपुर (महाराष्ट्र )
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अमृत - करण
मन की ममता जमीन से जायदाद से, पैसे से छूटे तभी दान दिया जा सकता है, गरीबों की, जरूरतमन्दों की स्वधर्मियों की सेवा की जा सकती है । अगर परिग्रह पर से मन की ममता नहीं छूटती तो दान, सेवा आदि कोई शुभ कार्य नहीं हो सकता |
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- श्राचार्य श्री हस्ती
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