Book Title: Jinvani Special issue on Acharya Hastimalji Vyaktitva evam Krutitva Visheshank 1992
Author(s): Narendra Bhanavat, Shanta Bhanavat
Publisher: Samyag Gyan Pracharak Mandal
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प्रात्म-वैभव के विकास हेतुप्रार्थना
- डॉ० धनराज चौधरी
उपलब्ध आध्यात्मिक साहित्य को जब हम देखते हैं तो पूरी तरह प्रार्थना विषय को लेकर ही पुस्तकें नहीं के बराबर हैं, प्रार्थना पर कुछ छुट-पुट लेख मनीषियों के प्राप्य हैं मगर वे एक सामान्य साधक के लिए दुरूह, अस्पष्ट, अपूर्ण और अपर्याप्त हैं। उनसे प्रार्थी-इच्छुक का काम बनता नहीं-उसे जिज्ञासाओं का समाधान नहीं मिलता, उसे प्रार्थना करने की कोई आरंभिक उछाल भले ही मिल जाय परन्तु उस द्रव से नियमितता बनाये रखनेवाला ईंधन नहीं मिलता कि वांछित पौष्टिकता मिले और निरंतरता बनी रहे । सुमिरन, जप, भजन, शास्त्र, कीर्तन बहुत सी विविधताएँ उपलब्ध हैं कि जीव अपना आपा अरप सके, मन का संशय छूट सके, कर्मों का क्षय हो सके । अवश्य ही,
सभी रसायन हम करी, नहीं नाम सम कोय।
रंचक घट में संचरै, कंचन तब तन होय ।। दुनिया के सारे रसायनों को देख लिया, परन्तु नाम के बराबर कोई नहीं, उसकी एक बूंद भी यदि देह में रच जाय तो हमारा शरीर सोना हो जायजन्म लेना सार्थक हो जाय । अनूठेपन के लिए प्रसिद्ध मौलाना रूम फरमाते हैं
'ई जहान जन्दां व माजन्दानियां ।
हजरा कु जन्दां व खुद रा दार हां ।।' अर्थात् यह संसार कैदखाना है, इसमें हम कैद हैं, तू कैदखाने की छत में सुराख कर यहां से भाग छूट । निश्चय ही सुधि जन पदार्थ की कैद से परे हटना चाहता है मगर विविधताएँ इतनी हैं कि वह कभी-कभी तो अनजाने ही पुनः लिप्त हो जाता है। विधियाँ अनेक हैं, उन्हें दोष देना अनुचित है, हम ही भटक जाते हैं क्षुद्रता में लक्ष्य को पोछा सीमित कर बैठते हैं । ऐसे में आगाह कौन करे, मूर्छा कैसे हटे ?
धार्मिक साहित्य के पाठकों को एक ऐसी पुस्तक की जोरों से तलाश है जो
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