Book Title: Jinvani Special issue on Acharya Hastimalji Vyaktitva evam Krutitva Visheshank 1992
Author(s): Narendra Bhanavat, Shanta Bhanavat
Publisher: Samyag Gyan Pracharak Mandal
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प्राचार्य श्री हस्तीमलजी म. सा.
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कराने वाले चारित्र का पालन नहीं हो, यदि ज्ञान के साथ क्रिया का संयोग नहीं हो, यदि विद्वान् क्रियावान् न हो ।
ज्ञान और क्रिया में अन्तर है । क्रिया के बिना प्रयोजन लाभ नहीं होता । बंधन-मुक्ति, स्वरूप-प्राप्ति सर्वप्रिय होने पर भी उसके ज्ञान मात्र से प्राप्ति नहीं होती। बिना पुरुषार्थ किये स्वतंत्रा प्राप्ति नहीं, प्रात्मानंद प्राप्ति महीं, मुक्ति लाभ नहीं, बंधन-मुक्ति नहीं । चारित्र के बिना ज्ञान और दर्शन का रथ मंजिल तय नहीं कर सकता।
___ यह पुरुषार्थ तप और संयम पूर्वक होना चाहिये । व्रत और तप तभी कीमती हैं जब उनके पीछे संयम हो, चारित्र-पालन हो।
(ग० व्या० मा० ६/१२) आज आधुनिक युग त्वरा का युग है । गति की गति इतनी तेज हो गई है कि आधुनिकता का पर्यायवाची ही वन गया है-त्वरा । मन-वचन और काया के व्यापार त्वरित उपकरणों की सहायता से इतने अग्रगामी हो गये हैं कि विश्व ने भौतिक क्षेत्र में तीव्र गति को पकड़ लिया है। इस त्वरा के युग में यदि आत्मा के प्रावरण को काटने हेतु उतनी ही तीव्रता से तप का ताप और संयम की अनिल नहीं बहेगी तो संतुलन असम्भव है। हमें गुरुदेव का सन्देश समझना होगा। विद्वत्ता में क्रिया का संयोग करना होगा।
इस अन्तरिक्ष रण के युग में, अन्तर को समता से भर लें। त्वरित काल के विषम भाव को, तप संयम से पूत करें।
विभाव में गति की इतनी तेजी और स्वभाव में एक कदम भी आगे नहीं बढ़े तो सन्तुलन असम्भव होगा। ज्ञान को आचरण में ढालना ही विद्वत्ता की कसौटी है।
आचार्य श्री ने अपने साधनामय सम्पूर्ण जीवन के अनुभवों से हमारे समक्ष सामायिक और स्वाध्याय को जीवन उन्नत करने की कुञ्जी के रूप में प्रस्तुत किया-"जीवन उन्नत करना चाहा तो सामायिक साधन करलो ।" "स्वाध्याय करो, स्वाध्याय करो।" यही वह क्रिया है जिसकी प्राचार्य श्री को विद्वानों से अपेक्षा है । स्वाध्याय से विचार-शुद्धि और सामायिक से प्राचार-शुद्धि होती है । साधना-रथ को साध्य तक पहुँचाने हेतु सामायिक और स्वाध्याय ये दो सबल पहिये हैं । साक्षरता और भौतिकता के अत्यधिक विकास के समय सामायिक और स्वाध्याय अधिक आवश्यक है।
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