Book Title: Jinvani Special issue on Acharya Hastimalji Vyaktitva evam Krutitva Visheshank 1992
Author(s): Narendra Bhanavat, Shanta Bhanavat
Publisher: Samyag Gyan Pracharak Mandal
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संयम-साधना के कीर्तिस्तंभ
- श्री लक्ष्मीचन्द जैन
साधना के बिना व्यक्ति को आत्मसिद्धि प्राप्त नहीं हो सकती। साधना का गुणगान तो सभी कर सकते हैं परन्तु जीवन में साधना करने वाले विरले ही होते हैं। संत की साधना गृहस्थ की साधना से उच्च कोटि की होती है। संतों में भी जैन संत एवं जैन संतों में स्थानकवासी जैन संत-सतियों की साधना उच्च कोटि की होती है, क्योंकि छः काया के जीवों की रक्षा विषयक परिपालना में सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण संयम-पद्धति स्थानकवासी श्वेताम्बर जैन संत-साध्वियों की है।
स्थानकवासी श्वेताम्बर जैन संतों, प्राचार्यों में भी एक से अधिक के नामों का उल्लेख होता है, परन्तु आचार्य श्री हस्तीमल जी म. सा. जैसा आचरण धर्म की आराधना करने वाला संत अति दुर्लभ है।
(१) लाउड स्पीकर का उपयोग नहीं होने देना। (२) अपना फोटो नहीं खींचने देना (३) अपने नाम पर किसी संस्था का नामकरण नहीं करने देना, ये कुछ ऐसी विरल विशेषताएँ हैं जिनके कारण आपका कृतित्व एवं व्यक्तित्व समूचे संत समुदाय में अनूठा है।
संयम-साधना में अप्रमत्त—'चरैवेति चरैवेति' के सिद्धान्त को आपने जीवन पर्यन्त अपनाया। स्वास्थ्य में कई प्रकार के उतार-चढ़ाव आए परन्तु स्थिरवास नहीं किया। प्रतिक्षण सजग रहकर संयम-साधना की। शासनपति भगवान महावीर का संदेश-'एक क्षण का भी प्रमाद मत करो'-आपके जीवन में साकार रूप से परिलक्षित होता रहा।
विचक्षण प्रतिभा के धनी-बीस वर्ष की ही आयु में प्राचार्य पद प्रदान किया जाना ही आपकी विलक्षण प्रतिभा का प्रमाण है। साठ वर्षों से अधिक समय तक संघ का संचालन किया । पाँच आचार ज्ञानाचार, दर्शनाचार, चरिताचार, तपाचार एवं वीर्याचार के पालन में आप अद्वितीय रहे । आचार में दृढ़ता एवं विचारों में नवीनता का मणिकांचन संयोग आपके जीवन में था।
आप गुणों के ऐसे पारखी थे कि एक बार व्यक्ति आपके संपर्क में आ जाय, फिर वह उनकी ओर खिंचा हुआ सदैव चला आता रहा । उच्च शिक्षा प्राप्त व्यक्तियों
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