Book Title: Jinvani Special issue on Acharya Hastimalji Vyaktitva evam Krutitva Visheshank 1992
Author(s): Narendra Bhanavat, Shanta Bhanavat
Publisher: Samyag Gyan Pracharak Mandal
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देखकर प्राचार्य श्री का हृदय सदैव प्रमुदित रहता था । कविवर 'युगवीर' के शब्दों में- " मैत्री भाव जगत् में मेरा, सब जीवों पर नित्य रहे ।"
व्यक्तित्व एवं कृतित्व
आचार्य प्रवर ने प्रभु महावीर के उपदेशों को जन-जन तक पहुँचाया । सामायिक एवं स्वाध्याय के माध्यम से आपने हजारों लोगों के जीबन को एक आध्यात्मिक मोड़ दिया । सामायिक और स्वाध्याय तो मानो आपका पर्यायवाची हो गया हो । जहाँ सामायिक और स्वाध्याय का नाम आता वहाँ आपका नाम अवश्य आता । आचार्य प्रवर अनेक गुणों के धारक थे। विनय, सेवा, सिद्धान्तों पर अडिगता आदि कुछ ऐसे गुण थे जिनका प्राचार्य प्रवर ने अपने सम्पूर्ण जीवन भर पालन किया । अपने से बड़ों का आदर करना आचार्य प्रवर की एक मुख्य विशेषता थी । हमने प्रत्यक्ष देखा है - प्राचार्य प्रवर ने अपने से दीक्षावय में बड़ों का सदैव सम्मान किया है । उदाहरण के रूप में रत्नवंश के वयोवृद्ध सन्त बाबाजी श्री सुजानमलजी म. सा. का, को आचार्य प्रवर से दीक्षा में बड़े थे, प्राचार्य होते हुये भी उन्हें आप वन्दना करते थे और बाबाजी भी संघ के नायक के रूप में प्राचार्य श्री को वन्दना करते थे । दोनों महापुरुषों का वन्दन-व्यवहार एक ओर जहाँ आपकी विनय भक्ति का परिचायक है वहाँ दूसरी ओर रत्नवंश का एक आदर्श था जो हमारे सन्त सतियों के लिए प्रेरणास्पद है ।
आचार्य प्रवर दूसरों की सेवा शुश्रूषा करने में सदैव तत्पर रहते थे और इसमें प्रमोद अनुभव करते थे । आप न केवल अपने सम्प्रदाय के सन्तों की वरन् इतर सम्प्रदाय के सन्तों की सेवा भी निष्पक्ष भाव से करते थे । पूज्य आचार्य श्री जयमलजी म. सा. की सम्प्रदाय के वयोवृद्ध स्वामीजी श्री चौथमलजी म. सा. की १३ दिन के संथारे तक सेवा कर, आपने जो सेवा का अनुपम उदाहरण प्रस्तुत किया, वह विरल है । अपने स्वयं के परिवार के सन्तों में स्वामीजी श्री भोजराजजी म. सा., शान्तमूर्ति श्री अमरचन्दजी म. सा., बाबाजी श्री सुजानमलजी म. सा, प्रसिद्ध भजनीक श्री मारणकमुनिजी म. सा. यदि सन्तों की अंतिम इच्छानुसार उनकी सेवा में रहकर आपने सेवा भाव को मूर्त रूप दिया । कुचेरा में स्थिर वास विराजित स्वामी श्री रावतमलजी म. सा. की सेवा हेतु अपने दो सन्तों को उनके पास भेज कर आपने दो सम्प्रदायों मधुर सम्बन्धों को एक कदम आगे बढ़ाया ।
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आपके अन्य गुणों में अपने सिद्धान्त पर हिमालय की तरह अडिग रहने गुण अन्य लोगों के लिये प्रेरणास्पद है । आपने सिद्धान्तों से कभी समझौता नहीं किया, भले ही इसके लिये आपको ही उपालम्भ क्यों न मिला हो । भौतिकता के प्रवाह में न बहते हुए आप सदैव अपने सिद्धान्तों पर अडिग रहे
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