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• व्यक्तित्व एवं कृतित्व
आचार्य श्री मूलतः आध्यात्मिक संवेदना के कवि हैं । सामाजिक अनुष्ठानों, पर्व-तिथियों, उत्सव-मेलों आदि को भी आपने आध्यात्मिक रंग दिया है।
__रक्षा बन्धन को आचार्य श्री ने जीव मात्र के प्रति रक्षा का प्रेरक त्यौहार बताया है-"बांधो-बांधो रे, जतना के सूत्र से, रक्षा होवेला ।" दीपावली, भगवान महावीर का निर्वाण दिवस प्रज्ञा और प्रकाश का पर्व है। यह संदेश देता है कि हम अंधकार से प्रकाश में जावें। प्राचार्य श्री ने दीपक की तरह साधनारत रहने की प्रेरणा दी है
"दीपक ज्यों जीवन जलता है, मूल्यवान भाया रे जगत् में ।
सत्पुरुषों का जीवन परहित, जलता शोभाया रे जगत् में ।।" होली विकार-विगलन का पर्व है
"ज्ञान-ध्यान की ज्योति जगा, दुष्कर्म जलाप्रो रे, स्वार्थ भाव की धूल उड़ाकर, प्रेम बढ़ाओ रे ।
राष्ट्र धर्म का शुद्ध गुलाबी रंग जमायो रे ॥"
जन्माष्टमी का संदेश है—पशुओं के प्रति प्रेम बढ़ावें, जीवन में सादगी लायें, अन्याय और अत्याचार का नीति पूर्वक मुकाबला करें। आचार्य श्री के शब्दों में
"कृष्ण कन्हैया जन्मे आज, भारत भार हटाने । गुरिणयों का मान बढ़ाने, हिंसा का पाप घटाने ॥"
लोक जीवन में शीतला सप्तमी और अक्षय तृतीया का बड़ा महत्त्व है। आचार्य श्री ने शीतला माता को दयामाता के रूप में देखा है-"हमारी दयामाता थाने मनाऊँ देवी शीतला।"
अक्षय तृतीय, अक्षय धर्मकरणी का प्रेरणादायी त्यौहार है। इस दिन वर्षीतप के पारणे होते हैं । जप-तप, दान, त्याग और आत्म-सुधार की प्रेरणा देते हुए प्राचार्य श्री कहते हैं
"अक्षय बीज वृद्धि का कारण, त्यौंहि भाव विचार । जप-तपकरणी खण्डित भाव में, नहीं करती उद्धार ॥"
जैन परम्परा में चातुर्मास और पर्युषण पर्व का विशेष महत्त्व है। जीवरक्षा और संयम-साधना की विशेष वृद्धि के लिए साधु-साध्वी वर्षाकाल में एक
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