Book Title: Jinvani Special issue on Acharya Hastimalji Vyaktitva evam Krutitva Visheshank 1992
Author(s): Narendra Bhanavat, Shanta Bhanavat
Publisher: Samyag Gyan Pracharak Mandal
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को प्रस्तुत कर अपने विचार की पुष्टि करना कालक्रम की दृष्टि से विचारणीय है ।
व्यक्तित्व एवं कृतित्व
तीर्थंकर महावीर का नयसार का जीव ब्राह्मणपत्नी देवानन्दा की कुक्षि में पहुँचा । हरिणगमेषी ने गर्भापहार कर उसे क्षत्रियाणी त्रिशला के गर्भ में पहुँचाया । गर्भापहार का यह प्रसंग 'स्थानांगसूत्र' में दस आश्चर्यों में गिना गया है । इसे इतिहास की कोटि में गिना जाये क्या, यह प्रश्न अभी भी हमारे सामने है |
गोशालक द्वारा प्रक्षिप्त तेजोलेश्या के कारण श्रमण महावीर को रक्तातिसार की बाधा आई जो रेवती के घर से प्राप्त बिजोरापाक के सेवन से दूर हो गई । इस प्रसंग में 'भगवती सूत्र' ( शतक १५ उद्देश १ ) में प्राये 'कवोयसरीर' और 'मज्जारकडए कुक्कुडमंसए' शब्दों का अर्थ विवादास्पद रहा है जिसे आचार्य श्री ने प्राचार्य अभयदेव सूरि और दानशेखर सूरि की टीकाओं के आधार पर क्रमशः कूष्मांडफल और मार्जार नामक वायु की निवृत्ति के लिए बिजोरा अर्थ किया है (पृ. ४२७ ) । इस प्रसंग में 'आचारांग' का द्वितीय श्रुतस्कन्ध स्मरणीय है जिसमें उद्देशक ४, सूत्र क्र. १, २४, ४६, उद्द ेशक १०, सूत्र ५८ में इस विषय पर चचां हुई है । इसी तरह दशवैकालिक सूत्र ५-१-७५-८१, निशीथ उद्देशक ६, सूत्र ७६, उपासक दशांग (१-८) भी इस संदर्भ में द्रष्टव्य हैं । वृत्तिकार शीलांक ने लूता आदि रोगोपचार के लिए अपवाद के रूप में लगता है, इसे विहित माना है । परन्तु जैनाचार की दृष्टि से किसी भी स्थिति में मांस भक्षण विहित नहीं माना जा सकता ।
आचार्य श्री ने अचेल शब्द का अर्थ प्रागमिक टीकाकारों के आधार पर अल्प मूल्य वाले जीर्णशीर्ण वस्त्र किया है (पृ. ४८७-८८ ) और सान्तोत्तर धर्म को महामूल्यवान वस्त्र धारण करने वाला बताया है । इसी तरह कुमार शब्द का अर्थ भी युवराज कहकर विवाहित किया है । पर दिगम्बर परम्परा में कुमार का अर्थ कुमार अवस्था में दीक्षा धारण करने से है ।
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इस खण्ड में 'तीर्थंकर परिचय पत्र' के नाम से परिशिष्ट १ में तीर्थंकरों के माता-पिता नाम, जन्मभूमि, च्यवन तिथि, च्यवन नक्षत्र, च्यवन स्थल, जन्म तिथि, जन्म नक्षत्र, वर्ण, लक्षण, शरीरमान, कौमार्य जीवन, राज्य काल, दीक्षातिथि, दीक्षा नक्षत्र, दीक्षा साथी, प्रथम तप, प्रथम पारणा दाता, प्रथम पारणास्थल, छद्मस्थकाल, केवलज्ञान तिथि, केवलज्ञान नक्षत्र, केवलज्ञान स्थल, चैत्यवृक्ष, गणधर, प्रथम शिष्य, प्रथम शिष्या साधु संख्या, साध्वी संख्या, श्रावक संख्या, श्राविका संख्या, केवलज्ञानी, मन:पर्यय ज्ञानी, अवधिज्ञानी, वैक्रियक
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