Book Title: Jinvani Special issue on Acharya Hastimalji Vyaktitva evam Krutitva Visheshank 1992
Author(s): Narendra Bhanavat, Shanta Bhanavat
Publisher: Samyag Gyan Pracharak Mandal
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प्राचार्य श्री हस्तीमलजी म. सा.
और सहज हो जाता है । इस प्रकार इन प्रवचनों की अतिरिक्त विशेषता हैप्रभाव की अन्विति ।
विवेच्य प्रवचनों में आर्ष ग्रन्थों की सूक्तियों का भी प्रचुर प्रयोग हुआ है । उन सूक्तियों को आधुनिक परिप्रेक्ष्य में जीवंत प्रायोगिक बाना पहिनाकर इस प्रकार प्रस्तुत किया गया है कि उनकी अर्थ-सम्पदा सहज और सरल प्रतीत हो उठती है साथ ही उनकी प्रासंगिकता भी प्रमाणित हो जाती है ।
प्रवचनों की भाषा प्रायोगिक है । उसमें छोटे-छोटे वाक्यों, शब्द युग्मों के विरल किन्तु सरल प्रयोग अभीष्ट अर्थ - अभिप्राय को अभिव्यक्त करने में सर्वथा सक्षम हैं । प्रवाचक के चारित्रिक बातायन से शब्द, वाक्य इस प्रकार फूटते चलते हैं कि श्रोता के चंचल चित्त को एकाग्र होकर सुनने के लिए विवश कर देते हैं | मंत्रमुग्ध की नाईं प्रवचनों की शैली का अद्भुत सम्मोहन सर्वथा उल्लेखनीय है । यही दशा होती है प्रवचन- अनुवाचनकर्ता की।
इस प्रकार सार में सारांश में कहा जा सकता है कि आचार्य प्रवर श्री हस्तीमलजी महाराज के प्रवचन, प्रभावक, पटुतापूर्ण तथा अर्थ-अभिप्राय से सर्वथा सम्पृक्त हैं जिनके पारायण अथवा श्रवन-मनन से प्रारणी को सधने और सुधरने की बेजोड़ प्रेरणा प्राप्त होती है ।
- ३६४, मंगल कलश,
सर्वोदय नगर,
१३१
अनुभव - मित्र
अनुभव तुम सम मित्र न कोय ।। टेर ।। अनुभव० ॥
सेंग सखाई तुम सम नाहीं, अन्तस् करने जोय || अनुभव० || १ ||
आगरा रोड, अलीगढ़ (उ. प्र. )
सत्य धरम की गैल चलाओ, दुर्मति भुरकी धोय ।
अन्तर न्याय निचोकर काढ़ो, तार ज्ञान को सोय || अनुभव० || २॥
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त्याग, भाग, बैराग, अमर फल, बगस-बगस श्रब मोय । 'सुजाण' सुरत- ज्ञान मोतियन की, अनुभव लड़ियां पोय || अनुभव ० || ३ ||
- मुनि श्री सुजानमलजी म. सा.
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