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• प्राचार्य श्री हस्तीमलजी म. सा.
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मूर्छा ममता करने वाले का अनुमोदन करता है, वह व्यक्ति दुःख से मुक्त नहीं होता।” (गजेन्द्र व्याख्यान माला, भाग ३, पृष्ठ ३४)
इसी प्रकार ‘दान प्रकरण' में आचार्य श्री सात्विक दान का प्रवचन के द्वारा स्वरूप स्थिर करते हैं-"बिना किसी उपकार-प्रत्युपकार एवं फल की आकांक्षा करते हुए इसी निःस्वार्थ उदार भाव से कि मुझे देना है, जो दान उचित, देश, काल में योग्य पात्र को दिया जाता है, उसी दान को भगवान महावीर ने सात्विक दान कहा है ।" (गजेन्द्र व्याख्यान माला, भाग ३, पृष्ठ १४८)
‘गजेन्द्र व्याख्यान माला' भाग ६ में आचार्य श्री के जलगाँव (महाराष्ट्र) में वर्षा-वास के अवसर पर दिये गये प्रवचनों पर आधारित कतिपय प्रवचनों का व्यवस्थित संकलन है । ज्ञान की सार्थकता क्रिया अथवा आचरण में है, अतः प्राचार्य श्री ने ज्ञान के साथ आचरण और आचरण के साथ ज्ञान को जोड़ने की दृष्टि से जन-जन को सामायिक और स्वाध्याय की प्रेरणा दी। इसी प्रेरणा के फलस्वरूप समाज और देश में स्वाध्याय के प्रति विशेष जागृति पैदा हुई । इन प्रवचनों में मुख्यत: संस्कार-निर्माण, व्यवहार शुद्धि और स्वाध्यायशीलता पर विशेष बल दिया गया है। वे तो आचार निष्ठ जीवन, लोक मंगल भावना और तपःपूत चिन्तन का पावन उद्गार हैं', इसीलिए वस्तुत: वे प्रवचन हैं जो श्रद्धालु जन-जन के मार्गदर्शन के लिए प्रस्फुटित हुए हैं।
चातुर्मास वस्तुतः दोष-परिमार्जन और सुख-प्राप्ति का अवसर प्रदान करते हैं । इस अवसर पर साधक को व्रत-साधना में तल्लीन होने का अवसर मिलता है।
___ "व्रत करने वाले भाई पौषध करना नहीं छोड़ें। यदि परिस्थितिवश नहीं करें तो भी ध्यान रखें कि वे बोलचाल में उत्तेजना की भाषा नहीं बोलेंगे। गुस्सा नहीं करेंगे, गाली-गलौज नहीं करेंगे । अपने तन-मन का संयम करके रहेंगे तो उनका व्रत या उपवास सफल होगा।” (गजेन्द्र व्याख्यान माला, भाग ६, पृष्ठ १६)
परिग्रह का विश्लेषण करते हुए प्राचार्य श्री की प्रवचन-पटुता श्रोता के मन को छूने में सर्वथा समर्थ है। यथा-"बहुत ऊँचा आदमी शासन में या उद्योग में यदि यह सोचे कि दूसरों के वाहन लकड़ी के तख्तियों के होते हैं तो मैं सोना, चाँदी के पाटियों का जहाज बनाऊँ । चाँदी-सोने की पाटियों के जहाज पर बैठकर भाई साहब यात्रा करें तो भाई साहब की कैसी गति बनेगी-डूब जाएँगे । आप इससे अनुभव कर लेंगे और हृदय में चिन्तन करेंगे कि ये रजत,
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