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प्राचार्य श्री हस्तीमलजी म. सा.
५.
३. दिगम्बर एवं श्वेताम्बर परम्परा के प्रसिद्ध पुरुषों के चरित्रों का इसमें
दोहन कर लिया गया है ।
४. इतिहास के अनेक नये तथ्य इसमें सामने आये हैं ।
७.
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- स्व. पं. हीरालाल शास्त्री ( ब्यावर )
— स्व. श्री अगरचन्द नाहटा (बीकानेर)
चौबीस तीर्थंकरों के चरित को तुलनात्मक दृष्टि से प्रस्तुत किया गया है ।
- स्व. डॉ. श्री ज्योतिप्रसाद जैन ( लखनऊ )
६.
इस इतिहास से अनेक महत्त्वपूर्ण नई बातों की जानकारी होती है । - प्रो. डॉ. के. सी. जैन (उज्जैन) जैन तीर्थंकर - परम्परा के इतिहास को तुलनात्मक और वैज्ञानिक पद्धति से मूल्यांकित किया गया है ।
— डॉ. नेमीचन्द जैन (इन्दौर )
८. ऐतिहासिक तथ्यों की गवेषणा के लिए ब्राह्मण और बौद्ध साहित्य का भी उपयोग किया गया है ।
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- श्रमण (वाराणसी) में समीक्षा ६. फुटनोट्स के मूल ग्रन्थों के सन्दर्भ से यह कृति पूर्ण प्रामाणिक बन गई है । - डॉ. कमलचन्द सोगानी (उदयपुर) १०. इस ग्रन्थ में शास्त्र के विपरीत न जाने का विशेष ध्यान विद्वान् लेखक ने रखा है । — डॉ. भागचन्द जैन भास्कर (नागपुर)
इन मन्तव्यों से स्पष्ट है कि आचार्य श्री ने इस इतिहास के निर्माण में विभिन्न आयामों का ध्यान रखा है । यह केवल किसी धर्मं विशेष का इतिहास नहीं है अपितु जैन धर्म की परम्परा में हुए धार्मिक महापुरुषों, आचार्यों और लेखकों ने अपने जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में जो महत्त्वपूर्ण कार्य किये, उन सबका इतिवृत्त ऐतिहासिक दृष्टि से इसमें प्रस्तुत किया गया है । प्राचार्य श्री का यह कथन सत्य है कि “धार्मिक पुरुषों में प्राचार-विचार, उनके देश में प्रचार एवं प्रसार तथा विस्तार का इतिवृत्त ही धर्म का इतिहास है ।" अत: 'जैन धर्म के मौलिक इतिहास' के इन चार भागों में जैन धर्म के आदि प्रवर्तक, कुलकर और उनके वंशज प्रादिदेव ऋषभ तीर्थंकर से लेकर पन्द्रहवीं शताब्दी के धार्मिक क्रान्ति-प्रवर्तक लोकाशाह के समय तक का जैन संघ का इतिहास उपलब्ध जैन
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