Book Title: Jinvani Special issue on Acharya Hastimalji Vyaktitva evam Krutitva Visheshank 1992
Author(s): Narendra Bhanavat, Shanta Bhanavat
Publisher: Samyag Gyan Pracharak Mandal
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• प्राचार्य श्री हस्तीमलजी म. सा.
• १२५
ग्रन्थमाला के चतुर्थ भाग में प्रस्तुत किया गया है । आचार्य श्री की प्रेरणा और मार्गदर्शन में इस भाग का लेखन श्री गजसिंह राठौड़ ने किया है। जैन धर्म और इतिहास के मर्मज्ञ लेखक ने इस भाग को बड़े श्रमपूर्वक लिखा है और उपयोगी सामग्री प्रस्तुत की है। इस भाग में सामान्य श्रुतधर जैन आचार्यों का प्रामाणिक विवरण उपलब्ध है । जिनचन्द्रसूरि, अभयदेवसूरि, आचार्य हेमचन्द्र, जिनप्रभसूरि आदि अनेक प्रभावक आचार्यों के योगदान की इसमें चर्चा है । किन्तु सम्भवतः विस्तार भय से दिगम्बर जैनाचार्यों का उल्लेख नहीं है । यह खण्ड श्वे० परम्परा के प्रमुख जैन गच्छों और संघों का इतिहास प्रस्तुत करता है । प्रसंगवश मुगल शासकरें, प्रमुख जैन शासकों और श्रावकों का विवरण भी इसमें दिया गया है। मध्ययुगीन भारतीय इतिहास के लिए इस खण्ड की सामग्री बहुत उपयोगी है। यह युग धार्मिक क्रान्तियों का युग था। जैन धर्म और संघ के अनुयायियों में भी उस समय पारस्परिक प्रतिस्पर्धा एवं उथल-पुथल थी । इतिहास लेखक इसके प्रभाव से बच नहीं सकता। अतः इस खण्ड में वही सामग्री प्रस्तुत की जा सकी है, जिससे जैन धर्म के इतिहास की कड़ियाँ जुड़ सकें और उसके सिद्धान्त/स्वरूप में कोई व्यवधान न पड़े। ग्रन्थ के आकार की, समय की भी सीमा होती है अत: बहुत कुछ जैन इतिहास के वे तथ्य इसमें रह भी गये हैं, जिनसे जैन परम्परा की कई शाखाएँ-प्रशाखाएँ पल्लवति-पुष्पित हुई हैं।
"जैन धर्म का इतिहास" विभिन्न आयामों वाला है। तीर्थंकरों, महापुरुषों, प्रभावक श्रावक-श्राविकाओं, राजपुरुषों, दार्शनिकों, साहित्यकारों, संघोंगच्छों, प्राचार्यों आदि को दृष्टि में रखकर इतिहास लिखा जा सकता है। यह सुनियोजित एवं विद्वानों के समूह के अथक श्रम की अपेक्षा रखता है। पूज्य आचार्य श्री हस्तीमलजी महाराज सा. ने “जैन धर्म का मौलिक इतिहास" के चार भागों का निर्माण एवं प्रकाशन कराकर एक ऐतिहासिक कार्य किया है। तीर्थंकरों एवं उनके शिष्यों/पट्टधरों को आधार बनाकर यह इतिहास लिखा गया है। प्रसंगवश इसमें सम्पूर्ण जैन संस्कृति का संरक्षण हो गया है। आचार्य श्री ने समाज को वे इतिहास चक्षु प्रदान कर दिये हैं जो और गहरे . गोते लगाकर जैन धर्म के इतिहास को पूर्ण और विविध आयाम वाला बना सकते हैं।
जैन धर्म के इतिहास का अध्ययन-अनुसंधान गतिशील हो, इसके लिए निम्नांकित आधुनिक ग्रन्थ उपयोगी हो सकते हैं :१. जैन परम्परानो इतिहास, भाग १-२, (त्रिपुटी) २. जैन शिलालेख संग्रह भाग १, २, ३, ४, बम्बई
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