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. . प्राचार्य श्री हस्तीमलजी म. सा.
२. माघनन्दि की दूरदर्शिता पर प्रकाश । ३. यापनीय परम्परा पर अभिनव प्रकाश ।
४. चोल, चेर, पाण्ड्य, गंग, होयसल, राष्ट्रकूट, चालुक्य आदि राजाओं का जैनधर्म के लिए आश्रयदान ।
५. ४७५ वर्षों के तिमिराच्छन्न इतिहास पर नये शोधपूर्ण तथ्यों का प्राकलन।
६. जैनधर्म संघ पर संक्रान्ति के भयानक बादलों का उद्घाटन ।
७. द्रव्य परम्परा का प्रचार-प्रसार और भाव परम्परा की वर्चस्वता के ह्रासीकरण पर प्रकाश।
८. अभिलेखों पर नया विचार ।
६. नयी पट्टावलियों की खोज-जैतारण भण्डार से प्राप्त देवद्धिगणि क्षमाश्रमण की पट्टावली का आधार ग्रहण ।
१०. चैत्यवासी परम्परा का क्रमबद्ध इतिवृत्त और उसकी शिथिलाचारवृत्ति पर अभिनव प्रकाश ।
११. जैनाचार्य चरितावली और पट्टावली प्रबन्ध संग्रह ग्रन्थों में निहित ऐतिहासिक तथ्यों पर पुनर्मूल्यांकन की आवश्यकता।
इसके बाद लेखक ने हरिभद्रसूरि (वि० सं० ७५७-८२७), अकलंक (ई० ७२०-७८०), अपराजितसूरि (वि० की ८वीं शती), चैत्यवासी आचार्य शीलगुणसूरि (वी० नि० की १३वीं शती) वप्पभट्टसूरि (वि० सं० ८००-८६५), उद्योतनसूरि (८वीं शती), जिनसेन (वि० की हवीं शती), वीरसेन (वि० सं० ७३८), शाकटायन (शक सं० ७७२), शीलांकाचार्य, यशोभद्रसूरि, गुणभद्र, स्वयंभू, विद्यानन्द आदि प्राचार्यों का विवरण देते हुए काष्ठा संघ, माथुर संघ, सांडेरगच्छ, हथूडीगच्छ, बडगच्छ आदि की उत्पत्ति और उनके समकालीन राजवंशों के योगदान की भी चर्चा की है।
चतुर्थ खण्ड __ श्री गजसिंह राठोड़ द्वारा लिखित इतिहास के इस चतुर्थ भाग में वी० नि० सं० १४७६ से २००० तक के इतिहास को समाविष्ट किया गया है। इस
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