Book Title: Jinvani Special issue on Acharya Hastimalji Vyaktitva evam Krutitva Visheshank 1992
Author(s): Narendra Bhanavat, Shanta Bhanavat
Publisher: Samyag Gyan Pracharak Mandal
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• ११६
• व्यक्तित्व एवं कृतित्व
५. प्रधानाचार्य, वाचनाचार्य, गणाचार्य की परम्पराओं पर सयुक्तिक प्रकाश डाला गया है।
६. नन्दि स्थविरावली और कल्पसूत्रीया स्थविरावली का आधार लेकर मथुरा के कंकाली टीला में प्राप्त शिलालेखों की सामग्री पर अभिनव प्रकाश ।
७. कनिष्क के राज्य के चौथे वर्ष वी० नि० सं० ६०६ से पूर्व की कोई जैनमूर्ति मथुरा के राजकीय संग्रहालय में नहीं है।
८. विशुद्ध परम्परा की वाचनाचार्य, गणाचार्य और युगप्रधानाचार्य की परम्पराओं की क्षीणता चैत्यवासी परम्परा की लोकप्रियता के कारण।
६. चैत्यवासी परम्परा का वर्चस्व और शिथिलाचार से जैनधर्म में संकटों का पाना।
१०. मुखवस्त्रिका का ऐतिहासिक उल्लेख । ११. विशुद्ध परम्परा को पुनरुज्जीवित करने का अभियान प्रारम्भ ।
तृतीय खण्ड तृतीय खण्ड के दोनों भाग भी आगमों में प्रतिपादित जैनधर्म के मूल स्वरूप को ही प्रमुख आधार बनाकर लिखे गये हैं क्योंकि प्रागमेतर धर्मग्रन्थों में एतद्विषयक एकरूपता के दर्शन दुर्लभ हैं (सम्पादकीय, पृ० १०)। इस खण्ड के लेखन में 'तित्थोगालि पइन्ना, महानिशीथ, सन्दोह दोहावलि, संघपट्टक, पागम अष्टोत्तरी आदि ग्रन्थों तथा शिलालेखों का विशेष उपयोग किया गया है । इस खण्ड में वी० नि० सं० १००१ से १४७५ तक का इतिहास आकलित हुआ है। प्राचार्यश्री के मार्गदर्शन में श्री गजसिंह राठौड़ ने इस भाग को तैयार किया है । लेखक को इसमें अधिक श्रम करना पड़ा है।
- प्रारम्भ में वीरनिर्वाण से देवद्धिकाल तक की परम्परा को मूल परम्परा कहकर उसे संक्षिप्त रूप में लेखक ने प्रस्तुत किया है और बाद में उत्तरकालीन धर्मसंघ में चैत्यवासियों के कारण जो विकृतियां पायीं, उनकी विकासात्मक पृष्ठभूमि को भी स्पष्ट करने का प्रयत्न किया है।
भट्टारक परम्परा :
श्वेताम्बर-दिगम्बर दोनों परम्पराओं में भट्टारक परम्परा वी०नि० सं०
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