Book Title: Jinvani Special issue on Acharya Hastimalji Vyaktitva evam Krutitva Visheshank 1992
Author(s): Narendra Bhanavat, Shanta Bhanavat
Publisher: Samyag Gyan Pracharak Mandal
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" बिना दान के निष्फल कर हैं, शास्त्र श्रबण बिन कान । व्यर्थ नेत्र मुनि दर्शन के बिन, तके पराया गात ॥
धर्म स्थान में पहुँच सके ना इनके सकल करण जग में, है खाकर सरस पदार्थ बिगाड़े, बोल बिगाड़े बात । वृथा मिली वह रसना, जिसने गाई गुन जिन गुणगात ॥"
व्यक्तित्व एवं कृतित्व
व्यर्थं मिले वे पाँव । सत्संगति का दांव ।।
आचार्य श्री ने अपने जीवन को ज्ञान, दर्शन, चारित्र और दान, शील, तप, भाव की आराधना में मनोयोगपूर्वक समर्पित कर सार्थक किया । संथारापूर्वक समाधिभाव में लीन हो आपने मृत्यु को मंगल महोत्सव में बदलकर सचमुच अपनी “संकल्प” कविता में व्यक्त किये हुए भावों को मूर्त रूप प्रदान किया है
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गुरुदेव चरण वन्दन करके, मैं नूतन वर्ष प्रवेश करूँ ।
शम-संयम का साधन करके, स्थिर चित्त समाधि प्राप्त करूँ ॥ १ ॥
तन मन इन्द्रिय के शुभ साधन, पग-पग इच्छित उपलब्ध करूँ । एकत्व भाव में स्थिर होकर, रागादिक दोष को दूर करूँ || २ || हो चित्तसमाधि तन मन से, परिवार समाधि से विचरूँ । अवशेष क्षरणों को शासनहित, अर्पण कर जीवन सफल करूँ || ३ || निन्दा विकथा से दूर रहूँ, निज गुरण में सहजे रमण करूँ । गुरुवर वह शक्ति प्रदान करो, भवजल से नैया पार करूँ || ४ | शमदम संयम से प्रीति करूँ, जिन श्राज्ञा में अनुरक्ति करूँ । परगुण से प्रीति दूर करूँ, “गजुमुनि" यो आंतर भाव धरूँ ||५|| निष्कर्षत: : कहा जा सकता है कि आपने कविता को विचार तक सीमित नहीं रखा, उसे आचार में ढाला है । यही आपकी महानता है ।
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- अध्यक्ष, हिन्दी - विभाग, राजस्थान विश्वविद्यालय, जयपुर
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