Book Title: Jinvani Special issue on Acharya Hastimalji Vyaktitva evam Krutitva Visheshank 1992
Author(s): Narendra Bhanavat, Shanta Bhanavat
Publisher: Samyag Gyan Pracharak Mandal
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• व्यक्तित्व एवं कृतित्व
जब बहिरात्मा अन्तर्मुख होती है, तब सुरूप-कुरूप, काले-गोरे, लम्बे-बौने आदि का भाव नहीं रहता। इन्द्रिय आधारित सुख-दुःख से चेतना ऊपर उठ जाती है । तब न किसी प्रकार का रोग रहता है, न शोक । राग-द्वेष से ऊपर उठने पर जो अनुभव होता है, वह अतीन्द्रिय आनन्द का अनुभव है। अनुभूति के इसी क्षण में प्राचार्य हस्ती का कवि हृदय गा उठता है
मैं हूँ उस नगरी का भूप, जहाँ नहीं होती छाया-धूप । तारा मण्डल की न गति है, जहाँ न पहुँचे सूर । जगमग ज्योति सदा जगती है, दीसे यह जग कूप । श्रद्धा नगरी बास हमारा, चिन्मय कोष अनूप । निराबाध सुख में झूलूँ मैं, सचित्त अानन्द रूप । मैं न किसी से दबने वाला, रोग न मेरा रूप । 'गजेन्द्र' निजपद को पहचाने, सो भूपों का भूप।
इस स्थिति में आत्मा अनन्त प्रकाश से भर जाती है। कोई आशाइच्छा मन में नहीं रहती। शरीर और आत्मा के भेद-ज्ञान से भव-प्रपंच का पाश कट जाता है । कवि परम चेतना का स्पर्श पा, गा उठता हैमेरे अन्तर भयाप्रकाश, नहीं अब मुझे किसी की आस ।
रोग शोक नहीं मुझको देते, जरा मात्र भी त्रास । सदा शांतिमय मैं हूँ, मेरा अचल रूप है खास ।
मोह मिथ्यात्व की गाँठ गले तब, होवे ज्ञान प्रकाश । 'गजेन्द्र' देखे अलख रूप को, फिर न किसी की आस ।।
यह आत्मबोध अहिंसा, संयम और तप रूप धर्म की आराधना करने से संभव हो पाता है।
आत्म-बोध के साथ-साथ समाज-बोध के प्रति भी प्राचार्य श्री का कवि हृदय सजग रहा है । प्राचार्य श्री व्यक्ति की व्रतनिष्ठा और नैतिक प्रतिबद्धता को स्वस्थ समाज रचना के लिए आवश्यक मानते हैं। इसी दृष्टि से "जागोजागो हे आत्म बन्धु" कहकर वे जागृति का संदेश देते हैं। आचार्य श्री जागृत समाज का लक्षण भौतिक वैभव या धन-सम्पदा की अखूट प्राप्ति को नहीं मानते। आपकी दृष्टि में जागत समाज वह समाज है, जिसमें स्वाध्याय अर्थात् सशास्त्रों के अध्ययन के प्रति रुचि और सम्यकज्ञान के प्रति जागरूकता हो । अपने "स्वाध्याय संदेश" में आपने कहा है
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