Book Title: Jinvani Special issue on Acharya Hastimalji Vyaktitva evam Krutitva Visheshank 1992
Author(s): Narendra Bhanavat, Shanta Bhanavat
Publisher: Samyag Gyan Pracharak Mandal
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श्राचार्य श्री हस्तीमलजी म. सा.
विद्वान् होने के साथ-साथ आगम, न्याय, धर्म, दर्शन, व्याकरण, साहित्य, इतिहास आदि विषयों के व्यापक अध्येता और गूढ़ गम्भीर चिन्तक रहे हैं । इसी गूढ़, गम्भीर ज्ञान, मनन और चिन्तन की संवेदना के धरातल से आपने काव्य-रचना की है, पर आपका काव्य कहीं भी शास्त्रीयता से बोझिल नहीं हुआ है । वह सरल, सुबोध और स्पष्ट है । लगता है आपने अपने पांडित्यप्रदर्शन के लिए नहीं, वरन् आगमों में निहित जीवन-मूल्यों को जन-साधारण तक पहुँचाने के लिए तथा जैन सांस्कृतिक व ऐतिहासिक परम्पराओं से उसे अवगत कराने के उद्देश्य से ही काव्य विधा को अपनी अभिव्यक्ति का माध्यम बनाया | आपके काव्य में लोक-मंगल, आत्म- जागरण और नैतिक उन्नयन की भावना स्पष्ट परिलक्षित होती है ।
आचार्य श्री के काव्य को चार भागों में विभक्त किया जा सकता है१. स्तुति काव्य, २. उपदेश काव्य, ३. चरित काव्य और ४. पद्यानुवाद |
१. स्तुति काव्य - प्राचार्य श्री भाषा, साहित्य, ग्रागम व तत्त्वज्ञान के प्रखर पण्डित होकर भी और आचार्य जैसे महनीय प्रभावी पद को धारण करते हुए भी जीवन में अत्यन्त सरल, विनयशील और स्नेहपूरित रहे हैं । ज्ञान और भक्ति का शक्ति और स्नेह का, श्रुत-सेवा और समर्पण भाव का आप जैसा समन्वित व्यक्तित्व कम देखने में आता है । स्तुति में भक्त अपने आराध्य के प्रति निश्छल भाव से अपने को समर्पित करता है । आचार्य श्री का प्राराध्य वीतराग प्रभु है, जिसने राग-द्व ेष को जीत लिया है । भगवान् ऋषभदेव, शांतिनाथ, पार्श्वनाथ एवं महावीर स्वामी की स्तुति करते हुए उनके गुणों के प्रति कवि ने अपने आपको समर्पित किया है । भगवान् शांतिनाथ की प्रार्थना करते हुए कवि ने केवल अपने लिए नहीं, सबके लिए शांति की कामना की है—
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" भीतर शांति, बाहिर शांति, तुझमें शांति, मुझमें शांति । सबमें शांति बसा, सब मिलकर शांति कहो || १ || "
८३
भगवान् महावीर की वन्दना करते हुए कबि की यही चाह है कि वह ज्योतिर्धर, वीर जिनेश्वर का नाम सदा रटता रहे और दुर्मति से सुमति में उसका निवास हो -
"जिनराज चरण का चेरा, मांगू मैं सुमति-बसेरा ।
प्रो 'हस्ती' नित वन्दन करना, वीर जिनेश्वर को ||२|| "
आचार्य श्री की अपने गुरु के प्रति अनन्त श्रद्धाभक्ति है । गुरु ही शिष्य को पत्थर से प्रतिभावान बनाता है
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