Book Title: Jinvani Special issue on Acharya Hastimalji Vyaktitva evam Krutitva Visheshank 1992
Author(s): Narendra Bhanavat, Shanta Bhanavat
Publisher: Samyag Gyan Pracharak Mandal
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• ७८
• व्यक्तित्व एवं कृतित्व
रहा था कि बालोतरा सुरक्षित रह भी पायेगा या नहीं । पर जब युद्धबन्दी की घोषणा हुई तो पता लगा कि बालोतरा पूर्ण रूप से सुरक्षित था। ऐसे थे आचार्य श्री।
प्राचार्य श्री हस्तीमलजी म. सा. के व्यक्तित्व के बारे में जितना लिखा जावे, उतना ही कम होगा।
सब धरती कागज करूँ, लेखन करूँ बनराय। सब समुद्र की मसि करूँ, गुरु गुण लिखा न जाय ।।
-निजी सहायक, वन संरक्षक (वन्य जीव), जयपुर
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भेष धर यू ही जनम गमायो भेष धर यूं ही जनम गमायो। लच्छन स्याल, सांग धर सिंह को, खेत लोकां को खायो ॥१॥ कर कर कपट निपट चतुराई, आसण दृढ़ जमायो । अन्तर भोग, योग की बतियां, बग ध्यानी छल छायो ।।२।। कर नर नार निपट निज रागी, दया धर्म मुख गायो। सावज्ज-धर्म सपाप परूपी, जग सघलो बहकायो ।।३।। वस्त्र-पात्र-आहार-थानक में, सबलो दोष लगायो। संत दशा बिन संत कहायो, प्रो कांई कर्म कमायो ॥४॥ हाथ समरणी, हिये कतरणी, लटपट होठ हिलायो। जप-तप संयम प्रातम गुण बिन, गाडर सीस मुंडायो॥५॥ आगम वेण अनुपम सुणने, दया-धर्म दिल भायो। "रतनचन्द" आनन्द भयो अब, आतम राम रमायो ।।६।।
-प्राचार्य श्री रतनचन्दजी म. सा०
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