Book Title: Jinvani Special issue on Acharya Hastimalji Vyaktitva evam Krutitva Visheshank 1992
Author(s): Narendra Bhanavat, Shanta Bhanavat
Publisher: Samyag Gyan Pracharak Mandal
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नैतिक उत्थान के प्रबल पक्षधर
श्रीमती ऋचा सुनील जैन परम पूजनीय, चतुर्विध संघ के नायक पद को विभूषित करने वाले, सौम्य व्यक्तित्व के धनी, मृदुभाषी, सरल स्वभावी, रत्नवंश को दीपाने वाले, ज्ञानी, तेजस्वी, स्वाध्याय-प्रणेता, सामायिक के प्रबल पक्षधर जिन्होंने जैन धर्म के इतिहास के बिखरे हुए पन्नों को जुटाने का श्रमसाध्य कार्य किया, जैन धर्म का मौलिक इतिहास संकलित कर समाज को जो अनूठी भेट दी, वह अतुलनीय है।
नपे-तुले शब्दों में, सरल सहज भाषा में मंत्रमुग्ध करने वाला उनका उद्बोधन जो अनुभवी एवं धीर-गंभीर श्रावकों को भी उतना ही सुहाता, जितना कि किशोर वय के श्रोताओं को । हर श्रोता, चाहे वह किसी भी वय का हो, उसे लगता कि आचार्य प्रवर उसके ही हैं, उसे ही समझा रहे हैं, उसे ही उद्बोधित कर रहे हैं । व्रत, संयम, आराधना, सद्-आचरण की शिक्षा के हामी रहे आचार्य प्रवर श्री हस्तीमलजी म. सा० सदैव ही अपनी झोली के इन अनमोल रत्नों से आगन्तुक को मालामाल कर देते थे।
_ आचार्य प्रवर बच्चों में संस्कार के प्रबल पक्षधर थे। उनके द्वारा इन्दौर में श्री महावीर जैन स्वाध्यायशाला की नींव डाली गई। बच्चों को संस्कारित करने का कार्य उनके लिए सर्वोच्च प्राथमिकता का था। उनका मानना था कि संस्कार रहित जीवन अन्धकारमय होता है एवं असंस्कारी बालक को अपनी पथ-यात्रा का, अपने गन्तव्य का ज्ञान ही नहीं होता और वह गन्तव्यहीन दिशा में चलता जरूर है, लेकिन पहुँचता कहीं नहीं है एवं उसके द्वारा किया गया सारा श्रम निष्फल ही चला जाता है। आचार्य श्री ने कुव्यसन त्याग की ओर बच्चों को प्राकृष्ट किया, बच्चों को कुव्यसन की हानियाँ समझाईं, उन्हें दुर्गुणों से सचेत किया । कुव्यसन त्याग की पहली सीढ़ी के साथ वीर प्रभु का सामायिक-स्वाध्याय का फरमान उनके संरक्षण में बच्चों को सही पथ पर चलने को उद्यत करता है।
बच्चों को संस्कारित जीवन की ओर अग्रसर करने वाले उनके इस श्रम साध्य कार्य का मूल्यांकन उन बच्चों के संस्कारित जीबन को देखकर किया
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