Book Title: Jinvani Special issue on Acharya Hastimalji Vyaktitva evam Krutitva Visheshank 1992
Author(s): Narendra Bhanavat, Shanta Bhanavat
Publisher: Samyag Gyan Pracharak Mandal
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जा सकता है । आज जब भौतिकता की अन्धी दौड़ में युवा पीढ़ी बेतहाशा भागती जा रही है, देश एवं समाज में नित नये रूप में जन्म ले रही बुराइयाँ, स्मैक, हेरोइन, चरस, गांजा, भांग का नये रूप में उपयोग युवा पीढ़ी की सोचनेसमझने की शक्ति को लील रहा है, निर्माण एवं अनुसंधान के नये आयाम देने के कृत संकल्पित पथ से उसे भ्रष्ट कर रहा है, ऐसी स्थिति में हर बुराई से दूर रहने का नैतिक साहस प्रदान किया - परम तेजस्वी आचार्य प्रवर हस्तीमल जी म० सा० ने । उनके उपदेशों से, उनके तेजस्वी उद्बोधन से जो संस्कार क दीप प्रज्वलित हुआ, उसने इन सारी बुराइयों के तंत्र को समीप फटकने क मौका ही नहीं आने दिया ।
- जी- २, पुलिस आवास, सी.आर.पी. लाइन, इन्दौर- ४५,२००१
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व्यक्तित्व एवं कृतित्व
श्री तो गढ़ बांको राज
श्री तो गढ़ बांको राज, कायम करने शिव सुख चाखो राज || 13 आठ करम को घाट विषमता, मोह महीपत जाको । मुगतपुरी कायम की बिरियां, बिच-२ कर रह्यो साको राज || श्र० १ ॥ ३ खांडे की धार छुरी को पानो, विषम सुई को नाको । कायम करतां छिन नहीं लागे, जो निज मन ढग राखो राज || ओ० २ || जगत जाल की लाय विषमता, पुद्गल को रस पाको ।
कुं छोड़ नीरस होई जावो, जग सुख सिर रंज नाखो राज |प्रो० ३॥ " रतनचन्द" शिवगढ़ कूं चढ़तां, ऊठ ऊठ मत थाको । अचल अक्षय सुख छोड़ विषय सुख, फिर-२ मत अभिलाखो राज || श्र० ४ ॥
- श्राचार्य श्री रतनचन्दजी म० सा०
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