Book Title: Jinvani Special issue on Acharya Hastimalji Vyaktitva evam Krutitva Visheshank 1992
Author(s): Narendra Bhanavat, Shanta Bhanavat
Publisher: Samyag Gyan Pracharak Mandal
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• प्राचार्य श्री हस्तीमलजी म. सा.
• ७५
गया हर शब्द, गूढ आगम के अर्थ को नई दिशा देता है, जैनागम, इतिहास की पर्त को नये सिरे से सामने लाता है एवं मन-मस्तिष्क में नई आभा का सूत्रपात कर देता है । जैन आगम, इतिहास को संवारने व नई दिशा देने में आचार्य श्री द्वारा जो श्रम साध्य कार्य किया गया है, उसकी जितनी सराहना की जाय, उतनी कम है। उसका स्वाध्याय ही सही मायने में उसका मूल्य है और यही आचार्य श्री के प्रति हमारी सच्ची श्रद्धांजलि है।
-जी-२, पुलिस (सी. आर. पी.) लाईन, एम. वाय.
अस्पताल के पीछे, इन्दौर-४५२ ००१
ज्ञान रा बीड़ा रचायो रे
0 मुनि श्री सुजानमलजी म. सा. चाल-ज्ञान का विरवा लगायो रे। ज्ञान रा विड़ला रचायो रे, थाने सद्गुरु दे शाबाश,
ज्ञानरा बिड़ला रचाओ रे ।।टेर।। सील सुगन्ध जल अंग पखालो, तप सिरपाव सजावो रे । धर्म भोजन जीमो बहु-विध सूं, अनुभव बीड़ा खाओ रे ॥ज्ञान० १॥ निज गुण प्रेम का पान मंगायो, पर गुण चूनो लगायो रे । समकित काथो केवड़ियो डारी, उपसम लाली झलकाओ रे ।।ज्ञान० २।। सुरत सुपारी रा फूल कतर कर, धीरज इलायची ल्यायो रे । सुबुध बिदाम लगन लोंग धर, प्रवचन पिस्ता मिलायो रे ।।ज्ञान० ३।। नय निक्षेप रा डोडा जावंत्री, कृपा किस्तूरी गुण ठामो रे । सोना चांदी रा वर्ग धर्म शुक्ल रा, बीड़ा बांध लिपटामो रे ।।ज्ञान० ४।। विवेक बड़वीर ने राय चेतन कहै, हुकुम प्रमाण चढ़ायो रे। काम क्रोध मोह महीपति दुश्मन, इनको खोज गमाप्रो रे ।।ज्ञान० ५।। मोह राय पर कर केसरिया, बीड़ो झाल चढ़ जानो रे। समता गढ़ चढ़ सत्य बाण लड़, जीत निसाण घुड़ायो रे ।।ज्ञान० ६।। या विध ज्ञान का बीड़ा चाबी, शिव मार्ग अवधारो रे। 'सुजाण' कहे इन भव पर भव में, नित रहे रंग बधाो रे ।।ज्ञान० ७।।
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