Book Title: Jinvani Special issue on Acharya Hastimalji Vyaktitva evam Krutitva Visheshank 1992
Author(s): Narendra Bhanavat, Shanta Bhanavat
Publisher: Samyag Gyan Pracharak Mandal
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प्रभा गिड़िया
महान् व्यक्ति का स्मरण पुण्य अर्जन कराता है, महान् व्यक्ति की अभिव्यक्ति का स्मरण सद्गुणों का सर्जन कराता है, महान् व्यक्ति की विरक्ति का स्मरण दुर्गुणों का विसर्जन कराता है और महान् व्यक्ति के समाधि का स्मरण धर्म के प्रति समर्पण कराता है ।
नाम रटो दिन-रात
ऐसा महान् व्यक्ति कौन, जिनके निमित्त से पुण्य-अर्जन, जीवन-सर्जन, दुर्गुण - विसर्जन और धर्म - समर्पण होता है ?
ऐसा महान् व्यक्ति वही है जो आत्मा, महात्मा स्वरूप को धारण करे और महात्मा से परमात्मा बनने की दिशा में प्रयाण करे। ऐसे ही एक महान् आत्मा आचार्य श्री हस्तीमलजी महाराज साहब को अपने श्रद्धा-सुमन अर्पित करने हेतु मेरा मन लालायित हो रहा है । यह कार्य अत्यंत दुरूह है क्योंकि
सब धरती कागद करूँ, लेखनी सव बनराय ।
सात समुद्र की मसि करूँ, गुरु गुन लिखा न जाय ॥
गुरु-गुरण को लिखना सरल नहीं । गुरु को लघु कितना क्या अभिव्यक्त कर सकता है ? असीम व्यक्तित्व को क्या ससीम शब्दों में गूंथा जा सकता है ? कभी नहीं....
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फिर भी मैं लिख रही हूँ, ऐसा क्यों ?
यह प्रश्न अनुत्तरित ही रहेगा,
क्योंकि श्रद्धा जो है वह निराकार है ।
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मुझे स्मरण हो रहा है आचार्य मानतुंग स्वामी का 'भक्तामर स्तोत्र', दिनाथ प्रभु के प्रति उत्पन्न भावना को शब्दों की साकारता प्रदान करना चाह रहे हैं, साथ में अपनी असमर्थता जान रहे हैं । तब उनकी जो बेचैनीव्याकुलता थी, मानसिकता थी, वह निम्न शब्दों से स्पष्ट होती है—
"अल्पश्रुतं श्रुतवतां परिहासधाम, त्वद्भक्तिरेव मुखरी कुरुते बलान्माम् ।
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