Book Title: Jinvani Special issue on Acharya Hastimalji Vyaktitva evam Krutitva Visheshank 1992
Author(s): Narendra Bhanavat, Shanta Bhanavat
Publisher: Samyag Gyan Pracharak Mandal
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• प्राचार्य श्री हस्तीमलजी म. सा.
होता रहा है। अजमेर में संवत् १९६० के वृहद् साधु सम्मेलन के अवसर पर भी मुझे आप श्री के दर्शनों का लाभ प्राप्त हुआ। सम्मेलन में बड़े-बड़े महान् संत, प्राचार्य, उपाध्याय पधारे थे परन्तु उनमें सबसे कम आयु के प्राचार्य प्राप श्री ही थे।
संवत् १९६३ का प्राचार्य प्रवर का चातुर्मास अजमेर में, समीर शुभ कार्यालय भवन (ममैयों का नोहरा) में हुआ। इस समय अन्तेवासी शिष्य श्री छोटे लक्ष्मीचन्द जी म. सा. के सान्निध्य में मैंने प्रतिक्रमण सीखा तथा प्राचार्य श्री के दर्शनों एवं सेवा का सुअवसर भी प्राप्त हुआ। आचार्य प्रवर की विनम्रता भी देखने को मिली। उस समय श्री सुजानमल जी म. सा., श्री भोजराज जी म० सा० एवं श्री अमरचन्द जी म. सा० को दीक्षा एवं आयु में बड़े होने के नाते आचार्य श्री विधिवत् वन्दन करते और वे महान् सन्त आचार्य प्रवर का सम्मान करते ।
एक बार मेरे छोटे सुपुत्र चि० सुनीलकुमार को गंभीर व्याधि हुई। काफी चिकित्सा के बावजूद भी स्थिति निराशाजनक थी। प्राचार्य श्री भी उस समय अजमेर में विराजित थे। उनसे अर्ज की तो स्वयं कृपा करके मेरे निवासस्थान पधारे तथा चि० सुनील के कान में मंत्र सुनाया। उसी समय से उसके स्वास्थ्य में प्रगति प्रारम्भ हो गई तथा शीघ्र ही पूर्ण स्वास्थ्य लाभ हो गया। ऐसा था प्राचार्य श्री का वात्सल्य एवं प्रताप ।
दक्षिण प्रांत एवं बालोतरा के ग्रामों में विहार के समय आचार्य श्री के साथ-साथ चलने का सौभाग्य भी मुझे प्राप्त हुआ। छोटे ग्रामों में विहार में काफी कठिनाइयाँ सामने आती हैं परन्तु ऐसे महापुरुष सब परिस्थितियों में समभाव रखते हुए निर्मल संयम की आराधना करते हैं।
मैं जब कभी भी आचार्य श्री के दर्शन करने जाता, वे हमेशा ही धर्म ध्यान एवं स्वाध्याय की प्रेरणा देते तथा कई बार तो मुझे हँसकर कहते कि तुम तो भामाशाह के वंशज हो।
__ ऐसे से हमारे पूज्य गुरुदेव ! आज वे हमासे बीच शरीर रूप में तो नहीं हैं पर उनकी पुनीत स्मृति हमें युगों-युगों तक प्रेरणा प्रदान करती रहेगी। उस महापुरुष के चरण-कमलों में शत-शत वन्दन ।
~कावड़िया सदन, कड़क्का चौक, अजमेर
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