Book Title: Jinvani Special issue on Acharya Hastimalji Vyaktitva evam Krutitva Visheshank 1992
Author(s): Narendra Bhanavat, Shanta Bhanavat
Publisher: Samyag Gyan Pracharak Mandal
View full book text
________________
हे आत्मन ! तुमसे बढ़कर कोई नहीं !!
STOSKAR
PRANK
0 डॉ० श्रीमती मंजुला बम्ब
आज से ८२ वर्ष पहले सं० १९६७ पौष शुक्ला १४ को पीपाड़ नगर में जन्मा एक बालक भारत के कोने-कोने में अपनी ज्ञान-साधना और अपने व्यक्तित्व का प्रकाश फैलायेगा, यह किसी को क्या पता था ? अपने पूर्व जन्म की आराधना व शुभ कर्मों का परिपाक कहिये कि उसकी मातुश्री रूपादेवी के त्याग-वैराग्य का प्रभाव उस पर ऐसी अमिट छाप जमाता गया कि उसने अपनी माताजी को भी दीक्षा ग्रहण करने की ओर अग्रसर किया व स्वयं ने भी दस वर्ष की लघुवय में सम्वत् १९७७ में अजमेर शहर में जैन दीक्षा ग्रहण कर ली।
इतनी छोटी उम्र में जब साधारणतया बालक होश भी संभाल नहीं पाता, श्री केवलचन्दजी बोहरा व रूपादेवी के इस पूत्र ने अपने विशिष्ट ज्ञान व बोध से केवल संसार की असारता का ही भान नहीं किया, किन्तु अपने गुरु पूज्य आचार्य श्री शोभाचन्द्रजी की सेवा में अपने को समर्पित भी कर दिया।
__ अपनी तीव्र स्मरण-शक्ति एवं प्रखर बुद्धि के कारण आपने थोड़े ही समय में व्याकरण, प्राकृत, संस्कृत आदि विषयों में प्रवीणता प्राप्त कर ली। आपके पाण्डित्य को देखते हुए जब एक बार प्राचार्य प्रवर श्री शोभाचन्द्रजी म० सा० जोधपुर स्थित पेटी के नोहरे में विराजमान थे तो सुश्रावक श्री उदयराजजी लुणावत ने प्राचार्य प्रवर से निवेदन किया कि आप मुनि श्री हस्तीमलजी म. सा० को प्रवचन देने हेतु फरमावें । इस पर मुनि श्री ने उत्तर दिया कि 'अभी तो मुझे ज्ञान प्राप्त करने दो । सूंठ का गाँठिया लेकर मुझे पंसारी नहीं बनना है।' यह आप श्री की प्रखर बुद्धि का परिचायक है।
__ मापके आगमिक ज्ञान, प्रकाण्ड पाण्डित्य, अद्भुत बौद्धिक विलक्षणता आदि गुणों के कारण २० वर्ष की लघुवय में चतुर्विध संघ ने आपको रत्न वंश के प्राचार्य पद पर प्रतिष्ठित किया । ६०० वर्षों के अंतराल में २० वर्ष की अवस्था में आचार्य पद प्राप्त करने वाले आप प्रथम प्राचार्य थे।
Jain Educationa International
For Personal and Private Use Only
www.jainelibrary.org