Book Title: Jinvani Special issue on Acharya Hastimalji Vyaktitva evam Krutitva Visheshank 1992
Author(s): Narendra Bhanavat, Shanta Bhanavat
Publisher: Samyag Gyan Pracharak Mandal
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समापन
द्घाटन
0 श्री चंचल गिड़िया
__ कभी-कभी बीता हुआ काल-अतीत प्राणवान बन जाता है यदि उसे वर्तमान में साक्षात् करके कोई प्रेरणा प्राप्त करे तो.......अतीत की याने ७०-७२ वर्ष पूर्व का एक घटित घटना-प्रसंग । है एक छोटा सा नन्हा शिशु जिसमें बाल सुलभ चंचलता और संस्कारपरक जागरूकता थी........एक महापुरुष ने धर्मगंगा प्रवाहित की जो किसी के एक कान से प्रविष्ट होकर दूसरे कान से निकल गयी, किसी के कान में प्रविष्ट हो मुख से बाहर निकली, किसी बिरले के कान में यह वीरवाणी की धर्म-गंगा प्रविष्ट होकर हृदय में स्थापित हो गयी अर्थात् प्रथम श्रेणी के श्रोताओं ने समय खोया, द्वितीय श्रेणी के श्रोताओं ने सुनकर सर्वत्र प्रशंसा की और तृतीय श्रेणी का जो बिरला श्रोता था, उसने न समय खोया न प्रशंसा का गीत गाया किन्तु अपने जीवन को जोया (देखा)। वह विरला श्रोता था एक बालक जिसने अपनी शक्ति को जाना, प्रवचन-श्रवण से वह श्रमण बनने
को, आत्म-जागरण में बाधक सुख-सुविधाओं को, विभिन्न संयोगों को त्याग . करके आत्म-स्वरूप को परमात्म स्वरूप बनाने को वह लालायित हो उठा।
___सन् १९२० में स्वतंत्रता के प्रबल हिमायती लोकमान्य तिलक के रूप में एक भारत का रवि-रत्न अस्ताचल की ओर चला गया, उसी वर्ष आत्म-स्वतंत्रता के एक दिवाने बालक का रत्न वंश में मुनि हस्ती के रूप में उदय हुआ। राष्ट्रनेता तो चला गया किन्तु भावी धर्मनेता का अवतरण हुआ। यह उदय चर्चा-विचर्चा का विषय बना कि १० वर्ष का बालक क्या समझता है संयम में ?
मुनि हस्ती का प्रव्रज्या प्रवेश-प्रसंग प्रशंसनीय था- अद्भुत था। एक लघुवय बालक का माँ की गोद से माँ की गोद में आना कम आश्चर्यजनक नहीं था बल्कि यह प्रसंग भोगासक्त प्राणियों के लिये चुनौती था। माँ रूपा देवी ने पुत्र का मोह छोड़ा और पुत्र ने संसार का मोह छोड़ा। माता की गोद का मोह छोड़कर अष्ट प्रवचन माता की गोद में प्रमोद कर लिया। धर्मदेवी माँ रूपा ने स्वयं संयम स्वीकार करने का संकल्प करके पुत्र के लिये स्वरूप-रमण का पथ प्रशस्त किया। माँ-बेटे दोनों ने आत्म-अर्चना के महापथ पर समर्पण किया। जिन भक्ति प्रारम्भ कर दी। भक्ति से विरक्ति का, विराग का उदात्त जागरण
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