Book Title: Jinvani Special issue on Acharya Hastimalji Vyaktitva evam Krutitva Visheshank 1992
Author(s): Narendra Bhanavat, Shanta Bhanavat
Publisher: Samyag Gyan Pracharak Mandal
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• प्राचार्य श्री हस्तीमलजी म. सा.
• ३६
हो गया उनका यह वाक्य सुनकर । आश्चर्यान्वित था कि मेरे मनोभावों को वे कैसे जान गए।
मुझे १०-१५ दिन बुखार चढ़ा, काफी कमजोर हो गया, सीने में दर्द होने लगा, तबियत बताने में जोधपुर गया । आचार्य श्री का वहीं चातुर्मास था। दर्शन करने "रेनबो हाऊस" गया । मेरे शरीर की स्थिति देखकर आचार्य श्री बोले- क्या बात है ? मैंने कहा-बुखार चढ़ रहा है, और सीने में दर्द है । अतः डॉक्टर को तबियत बताने आया हूँ । आपके दर्शन कर अब डॉक्टर के पास जाऊँगा । सहसा मुखारविंद से निकला--"कुछ नहीं है, मौसम का प्रभाव है" फिर मैं डॉक्टर के पास गया । आधे घण्टे की छानबीन के बाद डॉक्टर ने कहा-मौसम के कारण ही है, और कुछ नहीं । मैं आश्चर्यचकित था गुरुदेव के इस निदान पर । एक्सरे की मशीन की भांति किसी भी अन्तरंग बात को जानने की उनमें अद्भुत शक्ति थी।
ध्यानी-समयबद्ध कार्यक्रम था उनका । चाहे कोई कितना भी बड़ा आदमी क्यों न आ जाता पर अपनी साधना के कार्यक्रम में हेरफेर नहीं करते । सुबह, दोपहर, शाम ध्यान व माला जाप के कार्यक्रम को कभी खण्डित नहीं होने दिया। माला फेरने वाले दाहिने हाथ की अँगुलियों की आकृति हर समय ऐसी रहने लगी जैसी माला फेरने के समय रहती थी । कितना विश्वास था प्रभु-स्मरण में !
मौनी-मौन साधना के प्रबल पक्षधर थे गुरुदेव । प्रतिदिन सुबह, दोपहर, शाम का समय निर्धारित था मौन के लिये । विशिष्ट तिथियों पर पूरे दिन-भर मौन रहकर स्वाध्याय में निमग्न रहते थे । यही कारण है कि उन्हें वचन-सिद्धि प्राप्त थी, वे अल्पभाषी थे।
ज्ञान-क्रिया का संगम-प्राचार्य श्री ने जब से पंच महाव्रत स्वीकार किए शास्त्रीय आज्ञा का उन्होंने वाचन ही नहीं किया बल्कि "तवेसु उत्तम बंभचेर", "समयं गोयम मा पमाए" हृदयंगम कर लिया । महान् तप अखण्ड ब्रह्मचर्य की जीवन भर साधना की व एक-एक क्षण का अप्रमत्त होकर सदुपयोग किया । तन, मन, वचन व पांचों इन्द्रियों पर पूर्ण नियंत्रण था उनका । संयम की अनूठी मस्ती थी उनमें । संयम के पालन करने व करवाने में कठोर थे पर दिल के दयालु थे। शिथिलाचार उन्हें कतई पसन्द न था । सम्प्रदाय विशेष से सम्बन्धित होने पर भी साम्प्रदायिकता से बिल्कुल परे थे।
असीम प्रात्म-शक्ति के धारी-अपनी निरन्तर साधना में उन्होंने अपने छोटे से शरीर में असीम आत्म-शक्ति का संचय कर लिया था। बड़े से बड़े
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