Book Title: Jinvani Special issue on Acharya Hastimalji Vyaktitva evam Krutitva Visheshank 1992
Author(s): Narendra Bhanavat, Shanta Bhanavat
Publisher: Samyag Gyan Pracharak Mandal
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स
प्रात्मा - महात्मा - परमात्मा
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श्री कस्तूरचन्द बाफरणा
चाँदनी चवदस के जन्म का विशेष महत्त्व होता है । इसी महत्त्व को सार्थक किया ८२ वर्ष पूर्व मरुधरा के पीपाड़ शहर में माता रूपादेवी की कोख से श्री केवलचन्दजी बोहरा के घर पौष सुदी १४ को जन्म लेकर एक आत्मा ने और वही आत्मा आगे जाकर परम पूज्य हस्तीमलजी म. सा० के नाम से विश्व-विख्यात हुई।
आचार्य श्री के आदि से लेकर अन्तिम समय तक के जीवन पर दृष्टिपात करें तो मानना पड़ेगा कि वे एक महान् आत्मा थीं। उनका सम्पूर्ण जीवन महानता को लिए हुए आश्चर्यों का पिटारा था।
दस साल की अल्पायु में दीक्षा जैसा महान् व्रत अंगीकार करना कम आश्चर्य की बात नहीं । शेर की तरह संयम अंगीकार कर शेर की तरह पालन किया। इस युग के वे एवन्ता कुमार थे । लघु वय में ही महात्मा बन गए।
__ सोलह साल की अल्पायु में अपने गुरु परम पूज्य शोभाचन्दजी म. सा. द्वारा उन्हें उत्तराधिकारी चुनना कम आश्चर्य की बात नहीं। इतनी कम उम्र में आचार्य पद प्राप्तकर्ता सैकड़ों नहीं बल्कि हजारों वर्षों के इतिहास में यह पहला उदाहरण है । गुरु ने ऐसे योग्य शिष्य का चयन किया, जिसने रत्न वंश के नाम को रोशन किया। .
____ करीब ७० साल तक संयम की कठोर साधना में निरन्तर बढ़ते रहे । २१ अप्रेल, ६१ को राजस्थान के निमाज गांव में स्वर्गवास हुआ । ७० साल तक स्व तथा पर कल्याण किया । शरीर की वृद्धावस्था में भी आत्मिक शक्ति का वर्द्धन किया । तन भले ही दुर्बल होने लगा पर मन सबल था । समय-समय पर शिष्य-मण्डली को यह भोलावरण देते रहते कि ख्याल रखना-'मैं खाली हाथ न चला जाऊँ ।' अरे वह आत्मा खाली हाथ कैसे जाती जिसने जीवन के क्षण-क्षण को सदुपयोग कर आत्म-शक्ति के खजाने को सुरक्षित कर दिया था ।
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