Book Title: Jinvani Special issue on Acharya Hastimalji Vyaktitva evam Krutitva Visheshank 1992
Author(s): Narendra Bhanavat, Shanta Bhanavat
Publisher: Samyag Gyan Pracharak Mandal
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जो
दूसरी बात धर्म की, समाज की, मानव की सेवा तो करें ही परन्तु मूक हैं, दया के पात्र हैं. उनकी पीड़ा को भी समझें और उन पशु-पक्षी की सेवा हेतु भी हमारी प्रवृत्तियाँ बनें - उन्हें अपनी सेवा का माध्यम बनाएँ । हर किसी को अपने से ऊपर उठकर दूसरों के लिए भी कुछ न कुछ करना चाहिए ।
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तीसरी बात है, स्वाध्याय की - हम धर्म को सकेंगे । धर्म को समझने के लिए स्वाध्याय जरूरी है, ही धर्म बनाएँ - कर्तव्य बनाएँ । महाराज साहब के जीवन जो मार्गदर्शक हैं, मगर मैं उन तक पहुँच नहीं पाया हूँ या जो मेरी समझ तक नहीं पाई हैं । परन्तु जिन्हें समझ पाया हूँ, उसी पर मनन करने का प्रयास कर रहा हूँ । ऐसी विभूति जिसने अपने त्याग तपश्चर्या से समाज को, धर्म को इतना कुछ दिया है, जिसका हिसाब हम इस जन्म में शायद ही लगा पाएँगे । केवल एक ही शब्द है कि हम उनके हमेशा ऋणी रहेंगे ।
व्यक्तित्व एवं कृतित्व
श्रहिंसक यज्ञ
- सम्पादक 'समाज- प्रवाह' गणेश मार्ग, जवाहरलाल नेहरू मार्ग, मुलुंड (पश्चिम) बम्बई - ४०० ०८०
स्वाध्याय से ही समझ इसलिए स्वाध्याय को की अनेक ऐसी बातें
मुनि श्री सुजानमल जी म. सा.
श्रवधू ऐसा यज्ञ रचाओ, तासे पार भवोदधि पात्रो रे । अवधू ||र || अनीत वैदिका विद्यत करने, तृष्णांबु छिनकाओ । ईंधन कर्म देहका रसकर, तप अग्नि प्रजलायो रे । अवधू. ॥१॥
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डाभ-तृणा घर दुमन जोगका, इन्द्रिय-विषय पशु ठाओ ।
दुर्भत - स्नेह रूप घृत सींची, चटवो लोभ जराम्रो रे । अवधू. ।।२।।
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हिंसा दोष आहुति देकर स्वाहा शब्द सुनाश्रो ।
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शांति पाठ नवकार वेद धुन, दीपक ज्ञान जगाओ से | अवधू. ||३||
श्रीफल कुंकुम पान सुपारी, नाना गुण दरसाओ । सामग्री सहु मेलि यथारथ, अहिंसा जग्ग जमाओ रे । अवधू. ||४||
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हिंसा जंग अधफल दु:ख दाता, करमानो बंध लखानो । 'सुजाण' जीव जतन जग्ग करतां, होवे हर्ष बधाओ रे । अवधू. ||५||
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